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वाक्यों में स्पष्ट नहीं किया जा सकता, उसे एक छोटे से मुहावरे या लोकोक्ति के माध्यम से सरलता से अभिव्यक्ति दी जा सकती है, अतः इनके माध्यम से लेखक संक्षेप में ही बहुत कुछ कह देता है।
मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से लेखक के भाषा पर अधिकार का परिचय मिलता है। लोकोक्तियाँ जन-सामान्य की धरोहर होती हैं, जो कवि जितना अधिक जन सम्पर्क में रहता है उतना अधिक ही अपनी भाषा में मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग करता है। भैया भगवतीदास ने भी मुहावरों और लोकोक्तियों का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग किया है जिससे उनकी भाषा में रोचकता और सजीवता आ गई है। यहाँ उनके द्वारा प्रयुक्त कुछ मुहावरे और लोकोक्तियाँ उदाहरण-स्वरूप प्रस्तुत हैं-
मुहावरे
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दिन दस बीत जाये हाथ पीट पछताय ।
पींजरे से पांछी उड़ जातु है।
व्याधि की पोट बनाई काया । पांय पसारि पर्यो धरती माहिं । तेरे कर चिन्तामणि आयो ।
घट की आँखें खोल जोहरी ।
तिनकी मूर उखारहु नींव । छिन में रंक करै छिन राव |
होय हम नाम दिन दिन सवायो । जो कबहु टेढ़ो बकै ।
बांधकर मोरचे बहुरि सन्मुख भयो ।
तबै मोह नृप बीडा धरै ।
चढ्यो सु मुंछ मरोरि ।
जो चूको अब दाव।
जो ऐहै मो दाव में, तौ मैं करिहों भोर ।
खोटे फंद रचे अरिजाला ।
सोवहु सदन पिछोरी तान । खोल देख घट पटहि उघरना । खाय चल्यो गांठ की कमाई ।
लाख बात की बात यह ।
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