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________________ रणसिंगे बज्जहिं, कोऊन भज्जहिं, करहिं महा दोउ जुद्ध।। इतजीव हंकारहिं, निज परवारहिं, करहु अरिन को रूद्ध।। डॉ0 प्रेमसागर जैन के अनुसार "उनका (भैया भगवतीदास का) ब्रह्मविलास ओज से भरा सिन्दूर-घट है। बनारसी का 'शान्त-रस' शान्ति की गोद में पनपा, जबकि भैया का वीरता के प्रभंजन में जनमा, पला और पुष्ट हुआ। अध्यात्म और भक्ति के क्षेत्र में वीर रस का प्रयोग भैया की अपनी विशेषता थी।"36 ___ उनमें भावाभिव्यक्ति की अद्भुत क्षमता थी। उनकी वाणी कामधेनु की भाँति उनके अभीप्सित भावों को व्यक्त करती चलती है। भावानुकूल भाषा का प्रयोग उनकी एक अन्य विशेषता है। उनकी भाषा का सांगोपांग अवलोकन करने के पश्चात् हम कह सकते हैं कि उनकी भाषा संस्कृत के तत्सम तद्भव शब्दों से युक्त अरबी, फारसी शब्दों से भरपूर ब्रजभाषा से प्रभावित, विकसित होती हुई खड़ी बोली थी। भावाभिव्यंजना की उनमें अद्भुत क्षमता थी। मुहावरे और लोकोक्तियाँ भाषा में मुहावरों तथा लोकोक्तियों का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। जब कोई शब्द-समूह अथवा वाक्यांश अपने अभिधार्थ को छोड़कर अन्य अर्थ का द्योतन करने लगता है और उसी अर्थ में रूढ़ हो जाता है तो वही मुहावरा बन जाता है। इस प्रकार अभिव्यक्ति का यह प्रकार शब्द की लक्षणा शक्ति पर आधारित है। हिन्दी के सब मुहावरे लक्ष्यार्थ के उदाहरण हैं। अर्थात् उन सबमें लक्षण-शक्ति अभिप्रेत होती है। संक्षेप में गहरी चोट कर जाना, कोई मार्मिक व्यंजना कर डालना, यह मुहावरों के माध्यम से ही सम्भव है। अतः मुहावरे भाषा का श्रृंगार हैं। जन-मानस के अनुभव के आधार पर अथवा किसी घटना विशेष के कारण जब कोई उक्ति समाज में प्रचलित हो जाती है तो लोकोक्ति कहलाती है। लोकोक्ति में गागर में सागर भरने की प्रवृति काम करती है। इसमें जीवन के सत्य बड़ी खूबी से प्रकट होते हैं। लोकोक्तियाँ मानवीय ज्ञान के धनीभूत रत्न हैं। सांसारिक व्यवहार-पटुता और सामान्य-बुद्धि का जैसा निदर्शन कहावतों में मिलता है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। इस प्रकार मुहावरे और लोकोक्तियाँ दोनों ही समाज के द्वारा अनुभूत तथ्यों पर आधारित हैं। इनमें अभिव्यंजना की अद्भुत शक्ति होती है। जो भाव कितने ही विस्तृत (137) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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