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शैल बाग ताल की न, जल जंतु जाल की न,
दया वृहध बाल की न, दंड दीजियतु है। देख गति काल की न, ताह कौन हालकी न,
___ चाबि चूब गालकी न, बीन लीजियतु है।25 मात्रिक कवित्त
इसके एक दल में 31 मात्राएं होती हैं और 16, 15 पर यति होती है। इसका एक उदाहरण द्रष्टव्य है
चेतन नींद बड़ी तुम लीनी, ऐसी नींद लेय-नहिं कोय। काल अनादि भये तोहि सोवत, विन जागे समकित क्यों होय।। निहर्चे शुद्ध गयो अपनो गुण, परके भाव भिन्न करि खोय।
हंस अंश उज्वल हवै जब ही, तब ही जीव सिद्ध सम होय।।26 दुर्मिल सवैया
इसमें लघु लघु गुरु के क्रम से चौबीस वर्णों की पूरी पंक्ति होती है। उनके काव्य से दुर्मिल सवैया का एक उदाहरण प्रस्तुत हैं
प्रभु बाहु सुग्रीव नरेश पिता, विजया जननी जग में जिनकी। मृग चिह्न विराजत जासु धुजा, नगरी है सुसीमा भली जिनकी।। शुभ केवल ज्ञान प्रकाश जिनेश्वर जानतु है सबही जिनकी।
गनवार कहै भवि जीव सुनो, तिहुँ लोक में कीरति है जिनकी।।। कुंडलिया
यह छंद भी भैया भगवतीदास द्वारा पर्याप्त मात्रा में व्यवहृत हुआ है, यथा
भैया, भरम न भूलिये, पुद्गल के परसंग। अपनो काज संवारिये, आय ज्ञान के अंग।। आय ज्ञान के अंग, आज दर्शन गहि लीजे। कीजे थिरता भाव, शुद्ध अनुभौ रस पीजै।। दीजे चउविधि दान, अहो शिव-खेत बसैया।
तुम त्रिभुवन के राय, भरम जिन भूलहु भैया।।28 छप्पय
उनके काव्य में छप्पय छंद का भी यत्र-तत्र प्रयोग हुआ है। एक उदाहरण प्रस्तुत है
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