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उनके काव्य में छन्द-परीक्षण से ज्ञात होता है कि उन्होंने विविध छंदों का प्रयोग किया है और छंदशास्त्र का उन्हें पर्याप्त ज्ञान था। छंदों का इतना वैविध्य विरल कवियों के काव्य में ही दृष्टिगत होता है। दोहा, चौपाई, कवित्त और छप्पय उनके प्रिय छंद हैं। अधिकतर रचनाएं दोहा चौपाई छंद में हैं। इनके अतिरिक्त सवैया, कुंडलिया, सोरठा, अरिल्ल, प्लवंगम, पद्धरि, आर्या, चांद्रायण आदि अनेक छंदों का भी प्रयोग किया गया है। उनके काव्य से कुछ छंदों के उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैंचौपई । यद्यपि प्रकाशित ब्रह्मविलास में बहुत से छंदों को चौपाई छंद लिखा गया है किन्तु परीक्षा करने पर ज्ञात हुआ कि वह 32 मात्राओं वाला चौपाई छंद न होकर 30 मात्रओं वाला चौपई छंद है, जिसके एक चरण में 15 मात्राएं होती हैं।22 यह लिपिकर्ताओं की अज्ञानता का ही परिणाम प्रतीत होता है। इसका एक उदाहरण प्रस्तुत है
"एक जीव गुण धरै अनंत। ताको कछु कहिये विरतंत।
सब गुण कर्म अछादित रहैं। कैसे भिन्न-भिन्न तिहँ कहैं।।''23 दोहा
भैया भगवतीदास ने अधिकतर रचनाओं का आरम्भ दोहा छंद से किया है जिसमें जिनेन्द्र भगवान की वंदना की गई है। इसके अतिरिक्त कुछ पूरी रचनाएं दोहा छंद में बद्ध हैं। उनके काव्य से दोहा छंदों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं
"तीर्थंकर त्रिभुवन तिलक, तारक तरन जिनन्द।। तास चरन वंदन करौं, मनधर परमानन्द।।" "ईश्वर निर्मल मुकुरवत, तीन लोक आभास।
सुख सत्ता चैतन्यमय, निश्चय ज्ञान विलास।।24 मनहरण कवित
इस छंद का एक सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत है जिसमें 8,8,8,7 वर्ण पर यति है और अन्तिम वर्ण गुरु है, छंद की लयात्मकता हृदयग्राही है"हाथी घोरे पालकी नगारे रथ नालकी न,
चकचोल चाल की न चढ़ि रीझियतु है। स्वेतपट चाल की न, मोती मन मालकी न,
देख द्युति भाल की न मान कीजियतु है।
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