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________________ छंद-योजना मानव अपनी हृदयगत भावनाओं और अनुभूतियों की अभिव्यक्ति साहित्य के रूप में करता है। जब यह अभिव्यक्ति विशेष गति और लय से युक्त होती है तब यह कविता की संज्ञा पा लेती है। 'मात्रा वा वर्ण वा दोनों के निश्चित क्रम वा माप वा संख्या के साथ ही विराम गति वा लय तथा तुक आदि के नियमों से युक्त रचना को पद्य कहते हैं। “पद्य' और 'छन्द' समानार्थक शब्द हैं। 20 मात्रा, वर्ण की रचना, विराम, गति का नियम और चरणान्त में समता जिन पंक्तियों में पाई जाती है, वे छंद कहलाती हैं। छंद बद्ध होने से काव्य का सौंदर्य द्विगुणित हो जाता है। साधारण वाक्य में वह प्रवाह और सौंदर्य नहीं होता जो छंद में बद्ध होने से उत्पन्न हो जाता है। जिस प्रकार नदी की स्वाभाविक धारा को तीव्र और प्रवाहमान बनाने के लिये पक्के पाटों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार भावनाओं और अनुभूतियों को प्रभावोत्पादक बनाने के लिये छंदों की आवश्यकता है। छंद-विधान नाद-सौंदर्य की विशेषता पर अवलम्बित है। अत: वह काव्य को संगीतात्मकता प्रदान करता है। काव्य और संगीत का संगम प्राचीन काल से होता रहा है। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि हिन्दी में ही नहीं अन्य भारतीय और अभारतीय भाषाओं में भी पद्य का विकास बहुत पहले हो गया था तथा गद्य का विकास आधुनिक काल में छापेखानों के अविष्कार के पश्चात् हुआ, इसका कारण यही है कि पद्य एक निश्चित क्रम, गति और लय में बद्ध रहने के कारण सरलता से कंठस्थ किया जा सकता था और लिपिबद्ध न होने पर भी एक पीढ़ी के द्वारा दूसरी पीढ़ी को हस्तनान्तरित किया जा सकता था। इस प्रकार प्राचीन काल में काव्य की धारा को अक्षुण्ण बनाये रखने का काफी कुछ श्रेय छंद-योजना को है। छंद में बद्ध होने से काव्य प्रभावपूर्ण आकर्षक एवं हृदयग्राही बन जाता है। छंद दो प्रकार के होते हैं- वर्णिक और मात्रिक। जिस छन्द के चरणों या पदों में वर्गों की संख्या समान होती है या जिसमें गणों के क्रम का नियम होता है उसे वर्ण-वृत (वर्णिक) कहते हैं। जिसके प्रत्येक चरण की मात्राएं समान रहती हैं उसे मात्रिक छंद कहते हैं। जैन कवियों ने अपने काव्य में दोनों ही प्रकार के छंदों का प्रयोग किया है। भैया भगवतीदास की रचनाओं में छंद वैविध्य दिखाई देता है। यद्यपि उन्होंने विनम्रशीलतावश स्वयं को पिंगलशास्त्र से अनभिज्ञ बताया है21 किन्तु (126) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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