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उदाहरण
___ गूढ सिद्धान्तों को सरल रूप में प्रस्तुत करने के लिये कवि ने उदाहरण अलंकार का आश्रय लिया है। 'परमात्मछत्तीसी' में इस अलंकार के सुन्दर उदाहरण हैं। यथा
"दोष आतमा को यहैं, राग द्वेष के संग।
जैसे पास मजीठ के, वस्त्र और ही रंग।।''15 विरोधाभास
'भैया' के काव्य में 'विरोधाभास' अलंकार के भी अच्छे उदाहरण हैं"त्याग बड़ो संसार में, पहुचावै शिवलोक।
त्यागहि तें सब पाइये, सुख अनन्त के थोक।।"16 असंगति
असंगति अलंकार का एक उदाहरण द्रष्टव्य है__ "देखी देह-खेत क्यारी ताकी ऐसी रीति न्यारी,
बोये कछु आन उपजत कछु आन है। पंचामृत रस सेती पोखिये शरीर नित,
• उपजै रूधिर मास हाडन को ठान है।।17 अन्योक्ति
उनके काव्य में अन्योक्ति अलंकार का भी यत्र-तत्र अच्छा निर्वाह हुआ है। एक उदाहरण प्रस्तुत है
"सूवा सयानप सब गई, सेयो सेमर वृच्छ। आये धोखे आम के, या पूरण इच्छ।। यापैं पूरण इच्छ वृच्छ को भेद न जान्यो। रहे विषय लपटाय, मुग्धमति भरम भुलान्यो।। फलमहिं निकसे तूल स्वाद पुन कछू न हुवा।
यहै जगत की रीतिदेखि, सेमर सम सूवा।।18 श्री नेमिचन्द्र शास्त्री ने हिन्दी जैन साहित्य में अलंकार योजना पर विचार करते हुए बताया है "हिन्दी जैन कवियों की कविता-कामिनी अनाड़ी राजकुलांगना के समान न तो अधिक अलंकारों के बोझ से दबी है और न ग्राम्य-बाला के समान निराभरण ही है। इसमें नागरिक रमणियों के समान सुन्दर और उपयुक्त अलंकारों का समावेश किया गया है।"19 भैया भगवतीदास के काव्य पर भी यह कथन चरितार्थ होता है।
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