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इस भाँति श्रीमती डॉ. जैन का यह शोध ग्रंथ सभी दृष्टियों से ज्ञानवर्धक होकर पठनीय एवं संग्रहणीय बन पड़ा है। इसकी भाषा सरल एवं मुहावरेदार होने से मूल ग्रंथ (ब्रह्मविलास) में निहित गूढ़ विषयों को भी आसानी से समझा जा सकता है। विषय प्रतिपादन की शैली रोचक और तर्कसंगत है। इस प्रकार सभी दृष्टियों से डॉ. जैन का प्रयास प्रशंसनीय है। आशा है वे अन्यान्य ग्रंथों का भी इसी प्रकार आलोडन कर अपनी प्रतिभा द्वारा समाज को आध्यात्मिक मार्गदर्शन कराती रहेंगी।
-नाथूराम डोंगरीय जैन 549, सुदामानगर इंदौर (म0 प्र0)
30.10.1994
(xi)
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