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________________ प्राक्कथन हिन्दी भक्त कवियों की काव्य-धारा शताब्दियों तक उत्तरी भारत की भूमि को रससिंचित करती रही है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्त कवियों की वर्गीकृत एवं विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है किन्तु खेद का विषय है कि उसमें जैन भक्त कवियों का उल्लेख तक नहीं हुआ है। हिन्दी साहित्य के विद्वान एवं मान्य इतिहासकारों को हिन्दी जैन साहित्य के अवलोकन का अवसर ही नहीं मिला। इसका एक कारण यह भी था कि जैन साहित्य सर्वसाधारण के लिये सुलभ नहीं था। आज भी साहित्य के अनेक अमूल्य रत्न जैन शास्त्रगारों के गर्भ में छिपे पड़े हैं। इसके अतिरिक्त हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखक साम्प्रदायिक कहकर जैन साहित्य की उपेक्षा करते रहे। सर्वप्रथम डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी का ध्यान इस तथ्य की ओर गया और उन्होंने घोषित किया कि यदि जैन साहित्य साम्प्रदायिक कहकर हिन्दी साहित्य की सीमाओं से निष्कासित किया जाता है तो हिन्दी के रामचरितमानस, पद्मावत जैसे अनेक अमूल्य ग्रंथ रत्न भी उसकी सीमाओं के भीतर प्रवेश न पा सकेंगे। वस्तुतः जैन साहित्य अत्यन्त विशाल है, उसके समुचित मूल्यांकन की आवश्यकता अभी भी शेष है। तत्पश्चात् अवश्य ही हिन्दी साहित्य के इतिहास में कुछ नये आयाम खुलेंगे, कुछ नवीन धारायें जुड़ेंगी। प्रस्तुत शोध ग्रंथ इसी दिशा में एक विनम्र प्रयास है। मेरे पूज्य पिता जी स्व0 श्री रतनलाल जैन, जैन धर्म और दर्शन के मर्मज्ञ विद्वान थे, मेरी माता स्व0 चंद्रवती जैन भी एक विदुषी महिला थीं। घर में जैन पंडितों तथा विद्धत् जनों का प्रायः आगमन होता था, तथा जैन दर्शन के सिद्धान्तों और साहित्य की प्रायः चर्चा होती थी। ऐसे धर्ममय वातावरण में रहते हुए जैन दर्शन और साहित्य के प्रति लगाव संस्कार रूप में आना सहज स्वाभाविक था। जैन साहित्य के उच्च कोटि के विद्वान, शोधक और विशाल संग्रहकर्ता स्व0 अगरचन्द नाहटा तथा स्व0 डॉ0 कस्तूर चंद कासलीवाल जी ने एक मुझे कुछ अज्ञात हिन्दी जैन कवियों को लेखन द्वारा प्रकाश में लाने की प्रेरणा प्रदान की। औरंगजेबकालीन जैन भक्त कवि भैया भगवतीदास के समस्त ग्रंथों के संग्रह (xii) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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