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"एक मतवारे करें अन्य मतवारे सब,
मेरे मतवारे परवारे मत सारे हैं।।" (अभंग पद यमक) परमात्म शतक में कवि का यमक के प्रति अनुराग चरम-सीमा को पहुँच गया है। लगभग तीस सोरठे एवं दोहे, ऐसे हैं जिनमें यमक का प्रयोग हुआ है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है
"हरी खात हो बावरे, हरी तोरि मति कौन।। ___हरी भजो आपौ तजो, हरी रीति सुख हौन।।" श्लेष भैया भगवतीदास के काव्य में श्लेष के प्रयोग अत्यंत विरल हैं।
अर्थालंकार । ___ अर्थालंकारों में उपमा, रूपक, दृष्टान्त भैया भगवतीदास के विशेष प्रिय अलंकार हैं। भाव साम्य के निरूपण में उपमान योजना से विशेष सहायता मिलती है। उनके उपमान सजीव, सटीक तथा प्रायः मौलिक हैं। उनसे बिम्ब ग्रहण में विशेष सहायता मिलती है। उनके काव्य से कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं
उपमा
उपमा कवि का अत्यंत प्रिय अलंकार है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है"पुहुप वृष्टि शिव सुख दातार। दिव्य ध्वनि जिन जै जै कार।।
चौसठ चवर ढरहिं चहु ओर। सेवहिं इन्द्र मेघ जिमि मोर।।''B मालोपमा मालोपमा अलंकार का एक उदाहरण द्रष्टव्य है"धूमन के धौरहर देख कहा गर्व करै.
ये तो छिन माहिं जाहिं पौन परसत ही। संध्या के समान रंग देखत ही होय भंग,
दीपक पतंग जैसे काल गरसत ही।। सुपने में भूप जैसे इन्द्रधनुष रूप जैसे,
ओसबूंद धूप जैसे दुरै दरसत ही। ऐसोई भरम सब कर्म जाल वर्गणा को,
तामें मूढ मग्न होय मरै तरसत ही।।" रूपक
धर्म, दर्शन तथा उपदेश के प्रसंग में रूपक अलंकार का सुन्दर निदर्शन
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