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________________ वीभत्स रस उत्पन्न करने वाले वर्णन किये हैं "बड़ी, नीत लघु नीत करत है, बाय सरत बदबोय भरी। फोडा बहुत फुनगणी मंडित, सकल देह मनु रोग दरी। शोणित हाड मांस मय मूरत, तापर रीझत घरी घरी। ऐसी नारि निरखिकर केशव ? 'रसिक प्रिया' तुम कहा करी॥'"37 अद्भुत रस विचित्र वस्तु के देखने व सुनने से जब आश्चर्य का परिपोषण होता है तब अद्भुत रस की प्रतीति होती है। आश्चर्य इसका स्थायी भाव है अद्भुत वस्तुएं अथवा अलौकिक घटनाएं आलम्बन विभाव, उनकी विलक्षणता उद्दीपन विभाव, औत्सुक्य, शंका, आवेग, जड़ता आदि संचारी भाव, नेत्र-विस्तार, रोमांच, स्तम्भ आदि अनुभाव है। भैया भगवतीदास के द्वारा तीर्थंकरों के असामान्य लक्षणों के वर्णन में अद्भुत रस की प्रतीति हुई है"देहधारी भगवान करै नाहीं खान पान, रहै कोटि पूरब लो जग में प्रसिधि है। बोलत अमोल बोल जीभ होठ हाले नाहि, देखै अरू जानै सब इन्द्री न अवधि है। डोलत फिरत रहै डग न भरत कहै, __परसंग त्यागी संग देखो केती रिधि है। ऐसी अचरज बात मिथ्या उर कैसे मात, ___ जानै सांची दृष्टिवारो जाके ज्ञान निधि है।।''38 हास्य, रौद्र, भयानक आदि अन्य रसों का वर्णन उनके काव्य में उपलब्ध नहीं है। इस प्रकार भैया भगवतीदास की समस्त कृतियों में शान्त रस सर्वप्रमुख है। दाम्पत्य भक्ति में रानी सुमति की उक्तियों में मिलन की आकुलता अथवा विरहातुरता का उतना उन्मेष नहीं है जितना उसके पत्नी रूप में मधुर मिठास भरे शब्दों में परामर्श का। दास्य भक्ति में उनकी उक्तियों में दीनता का अतिरेक नहीं है। वीर, अद्भुत तथा वीभत्स रस सहायक रूप में आये हैं। उनसे शांत रस अथवा शान्ता भक्ति के पूर्ण-परिपाक में अत्यधिक सहायता प्राप्त हुई है। (118) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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