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________________ डार पात फल फूल सवै कुम्हलाय जाय, कर्मन के वृक्षन को ऐसे के नसाइये। तबै होय चिदानन्द प्रगट प्रकाश रूप, विलसै अनन्त सुख सिद्ध में कहाइये।।"36 इस अनन्त आत्मिक आनन्द की उपलब्धि में ही परमशान्ति है, यही मानव जीवन का चरम लक्ष्य है। वीर रस भैया भगवतीदास के काव्य में वीर रस का भी सुन्दर परिपाक हुआ है। वीर रस का स्थायी भाव उत्साह, शत्रु आलम्बन विभाव, शत्रु का गर्व, पराक्रम आदि उद्दीपन विभाव हैं। गर्व, धृति, स्मृति, आवेग, हर्ष आदि संचारी भाव तथा रोमांच, गर्व युक्त उक्तियाँ, भुजाएं फड़कना आदि अनुभाव हैं। वीर रस के चार भेद माने गये हैं- युद्धवीर, दयावीर, धर्मवीर और दानवीर। भैया भगवतीदास के 'चेतनकर्मचरित्र' में राजा चेतन के द्वारा शत्रु राजा मोह से युद्ध करने के प्रसंग में वीर रस का समुचित परिपाक हुआ है "ज्ञान गम्भीर दलबीर संग ले चढ्यो, एक ते एक सब सरस सूरा। कोटि अरू सखिन न पार कोउ गने, ज्ञान के भेद दल सबल पूरा।" "बज्जहिं रण तूरे, दल बहु पूरे, चेतन गुण गावंत। सूरा तन जग्गो, कोउ न भग्गो, अरिदल पै धावंत।। ऐसे सब सूरे, ज्ञान अंकूरे, आये सम्मुख जेह।। आपा बल मंडे, अरिदल खंडे, पुरुषत्वन के गेह।।" "रणसिंगे बजहिं, कोउ न भज्जहिं करहिं, महा दोउ जुद्ध।। इत जीव हंकारहिं, निज परवारहिं, करह अरिन को रुद्ध॥" वीभत्स रस रुधिर मांस तथा अन्य घृणित वस्तुओं को देखकर उत्पन्न जुगुप्सा से वीभत्स रस उत्पन्न होता है। जुगुप्सा इसका स्थायी भाव है। घृणित वस्तुएं आलम्बन विभाव, कुत्सित रूप रंग उद्दीपन विभाव, ग्लानि, जड़ता, निर्वेद आदि संचारी भाव हैं। भैया भगवतीदास ने शरीर की निकृष्टता के प्रसंग में (117) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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