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ऐसी विधि पाय कहूँ भूलि और काज कीजै,
एतो को मान लीजे वीनती सहल में ।। "25
पत्नी के समान मधुर उपदेश और कौन दे सकता है ? वह भाँति-भाँति से उसे समझाते हुए कहती है
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" इक बात कहूँ शिवनायक जी, तुम लायक ठौर कहाँ अटके ? यह कौन विचक्षन रीति गही, विनु देखहि अक्षन सों भटके || अजहूँ गुणमानो तो शीख कहूँ, तुम खोलत क्यों न पटै घट के ? चिनमूरति आपु विराजतु है, तिन सूरत देखे सुधा गटके || आज बहुत दिन के पश्चात् सुमति का पति चेतन घर लौटकर आ रहा है। सुमति अपनी सखि से प्रसन्न होकर कहती है
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"देखो मेरी सखीयै आज चेतन घर आवै ।। काल अनादि फिर्यो परवश ही, अब निज सुधहिं चितावै।। जनम जनम के पाप किये जे, ते छिन माहि बहावै ।। श्री जिन आज्ञा शिर पर धर तो परमानंद गुण गावै ।। देत जलांजलि जगत फिरन को ऐसी जुगति बनावै ॥ | विलसै सुख निज परम अखंडित, भैया सब मन भावै।। रीतिकालीन साहित्य में दूती वर्णन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। दूती का मुख्य कार्य नायक नायिका का मिलन कराना होता था। एक ऐसी ही दूती सुमति को लेकर नायक चेतन के पास जाती है और उसकी प्रशंसा करते हुए कहती है" लाई हों लालन बाल अमोलक, देखहु तो तुम कैसी बनी हैं ? ऐसी कहूँ तिहूँ लोक में सुन्दर, और न नारि अनेक बनी हैं।। याही तैं तोहि कहूँ नित चेतन ! याहू की प्रीति जु तो सो सनी है ।। तेरी और राधे की रीझि अनंत, सु मो पें कहूँ यह जात गनी है। 28 मानव हृदय एक ही नारी की ओर अनुरक्त रह सकता है। कवि ने यहाँ एक मनोवैज्ञानिक सत्य का उद्घाटन किया है। सांसारिक काम वासनाओं में अनुरक्त प्राणी परमार्थ के पथ पर कैसे जा सकता है ? मन को सम्बोधन करते हुए वह कहता है कि यदि तू स्त्री अर्थात् विषय-वासनाओं का त्याग कर दे तो शिवनारी तुझे वरण कर लेगी
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"रे मन मूढ़ विचारि करो, तिय के
संग बात सबै बिगरैगी ।।
ए मन ज्ञान सुध्यान धरो, जिनके संग बात सबै सुधरैगी ।।
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