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26. "Poetry is not concerned with telling people what is to : do, but with extending our knowledge of good and evil."
-पं0 रामदहिन मिश्र, काव्य-दर्पण, पृ0 सं0 30 से उद्धृत 27. "धूमन के धरोहर देख कहा गर्व करै,
ये तो छिन माहिं जाहि पौन परसत हो। संध्या के समान रंग देखत ही होय भंग,
दीपक पतंग जैसे काल गरसत हो।।" -- भैया भगवतीदास, पुण्यपचीसिका, छं0 सं0 17 .. 28. "आतम के तत्व को निमित्त कछू रंच पायों,
तौलों तोहि ग्रन्थनि में ऐसेके बतायो है। जैसे रसव्यंजन में करछी फिरै सदीव,
मूढ़ता स्वभाव सों न स्वाद कछु पायो है।"
- भैया भगवतीदास, पुण्यपचीसिका, छं0 सं0 22 . 29. "जगत मूल यह राग है, मुक्ति मूल वैराग।
भूल दुहून को यह कह्यो, जाग सकै. तो जाग।" - भैया भगवतीदास, वैराग्य पचीसिका, छं0 सं0 2
लाला भगवान दीन, अलंकार मंजूषा, पृ0 सं0 14 31. श्री जुगलकिशोर मुख्तार, युगवीर, पुराने साहित्य की खोज, अनेकान्त, .
नवम्बर 1956, पृ0 सं0 95, 96 32. प्राक्कथन, वृहद व्यसंग्रहः, प्रकाशक-श्री गणेशवर्णी, दिगम्बर जैन
ग्रंथमाला, खरखरी (धनबाद) बिहार।
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