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________________ 9. 10. 11. 12. 13.. 14. 15. 16 17. " तब बोले मुनिराज जी, मन क्यों गर्व करंत । देखहु तंदुल मच्छ को तुमतै नर्क परंत।। अर्थात् तंदुल मच्छ तेरे ही कारण नरक में जाता है। कहा जाता है कि जल में बड़े मच्छ के कान में एक छोटा सा मच्छ रहता है। बड़े मच्छ के मुख में छोटे-छोटे जीव जाते और निकलते रहते हैं, उन्हें जाता आता देखकर छोटा तंदुल मच्छ हर समय दुखी व क्रोधित रहता है कि इस बड़े मच्छ के स्थान पर मैं होता तो सबको खा लेता। इस भावना के कारण ही तंदुल मच्छ नरक में जाता है। - भैया भगवतीदास, पंचेन्द्रिय संवाद, छं० सं० 117 " मन राजा की सैन सब इन्द्रिय से उमराव । रात दिना दौरत फिरै, करै अनेक अन्याव ।। " भैया भगवतीदास, मनबत्तीसी, छं0 सं0 10 श्री बलदेव उपाध्याय, भारतीय दर्शन, तृतीय संस्करण 1948 पृ० सं० 3, 4 पं0 कैलाशचंद शास्त्री, जैन धर्म, पृ0सं0 62,63 आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, हिन्दी साहित्य का आदिकाल, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, द्वितीय संस्करण 1957, पटना 3, पृ0 सं0 11 "छहो सु द्रव्य अनादि के जगत माहि जयवंत । को किस ही कर्ता नहीं, यों भाखे भगवंत ।। " भैया भगवतीदास, अनादि बत्तीसिका, छं0 सं0 2 44 ' अपने अपने सहज सब उपजत विनशत वस्त। है अनादि को जगत यह इहि परकार समस्त । । ' भैया भगवतीदास, अनादि बत्तीसिका, छं0 सं0 26 "कर्मन के संयोग से भये तीन परकार । एक आतम द्रव्य को कर्म नचावन हार ।। " भैया भगवतीदास, परमात्म छत्तीसी, छं0 सं0 16 44 'मैंहि सिद्ध परमातमा, मैं ही आतमराम । मैं ही ज्ञाता ज्ञेय को, चेतन मेरो नाम ।। " - भैया भगवतीदास, परमात्म छत्तीसी, छं० सं० 12 Jain Education International (98) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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