________________
3.
4.
5.
6.
7.
8.
" पुग्गल के हारे हार पुग्गल के जीते जीत, पुग्गल की प्रीत संग कैसे बह बहे हो । लागत हो धाय धाय, लागे न उपाय कछु, सुनो चिदानन्द राय । कौन पंथ गहे हो। - भैया भगवतीदास, शतअष्टोत्तरी, छं0 सं0 9 "काल अनादि तैं फिरत फिरत जिय, अब यह नरभव उत्तम पायो । समुझि - समुझि पंडित नर प्रानी तेरे कर चिंतामणि आयो । घट की आँखों जोहरी, रतन जीव जिन देव बतायो । तिल में तेल बास फूलनि में घट में घटनायक गायो । " - भैया भगवतीदास, शतअष्टोत्तरी, छं० सं० 85 " पंचन सो भिन्न रहे कंचन ज्यों काई तजैं,
,
,
रंच न मलीन होय जाकी गति न्यारी हैं, कंजन के कुल ज्यों स्वभाव कीच छुवै नाहीं,
बसै जलमाहिं पै न ऊर्द्धता बिसारी हैं ।। " - भैया भगवतीदास, शतअष्टोत्तरी, छं0 सं0 55 "यही मोह नृप मोहि भुलाय । निजपुत्री दीन्ही परनाय ।
X
X
X
X
X
X
जड़पुर को मुह कियो नरेश । मैं जानो सब मेरो देश । तब में पाप किये इहि संग । मानि मानि अपने रस रंग। "
- भैया भगवतीदास, चेतनकर्मचरित्र, छं0 सं0 79, 82
" इतने दिन लों पालिकें, मैं तुम कीने पुष्ट । तातें लरिबे को भये गुण लोभी महादुष्ट || जाहु जाहु पापी सवै, चेतन के गुण जेह । मोको मुख न दिखावहु छिन में करिहों स्नेह ||
भैया भगवतीदास, चेतनकर्मचरित्र, छं० सं० 115, 116 " कानन की बातें सुनी, सांची झूठी होय ।
,
आँखिन देखी बात जो तामें फेर न कोय।। इन आँखिन सो देखिये, तीर्थंकर को रूप। सुख असंख्य हिरदै लसे, सो जाने चिद्रूप । '
19
- भैया भगवतीदास, पंचेन्द्रिय संवाद, छं0 सं0 50, 51
(97)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org