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कन्या मिथुन बुधेश, कर्क स्वामी श्री चंद गणि ।। मकर कुम्भ नृप शनी, सिंह राशिहि प्रभु रवि मणि ।। ये राशी द्वादश जगत में, ज्योतिष ग्रंथ बखानिये ।
तस नाथ सात लखि भविक जन, परम तत्व उर अनिये ।। "
कुछ विशेष राशियों में विशेष ग्रहों के स्थान उच्च माने जाते हैं। तीसरे छप्पय में कवि ने यही बताया है। मेष में सूर्य, वृष में चन्द्र, मकर में मंगल, कन्या में बुध, कर्क में बृहस्पति, मीन में शुक्र, तुला में शनि, मिथुन में राहु उच्च (स्थान) के माने जाते हैं। उच्च स्थान- स्थित ग्रह अपने भाव की वृद्धि करता है। इसके अतिरिक्त इनकी विपरीत राशियों में उन्हीं ग्रहों को नीच स्थान का माना जाता है। चतुर्थ और पंचम दोहा छंदों में कवि ने इसी तथ्य का उल्लेख किया है। तुला राशि में सूर्य, वृश्चिक में चन्द्रमा, कर्क में मंगल, मीन में बुध, मकर में बृहस्पति, कन्या में शुक्र, मेष में शनि, धन में राहु नीच स्थान के माने जाते हैं ऐसा होने पर ग्रह जिस भाव (राशि) में स्थित है उसकी हानि करते हैं। द्रष्टव्य है प्रस्तुत छंद
"तुल सूरज वृश्चिक शशी, कर्क भौम बुध मीन।। मकर बृहस्पति कन्य भृगु, मेष शनिश्चर दीन ।। राहु होय धन राशि जो, ए सब कहिये नीच ।। परमारथ इनमें इतो, रहिये निज सुख बीच ।। " अन्त में भैया भगवतीदास कहते हैं
'परमारथ इनमें इतो, रहिये निज सुख बीच ।। "
अर्थात् कवि की दृष्टि अन्ततः अध्यात्म पर ही केन्द्रित है। सुख इन सब में नहीं अपने भीतर ही है, उसमें ही लीन रहना चाहिये।
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काव्यानुवाद
भैया भगवतीदास कृत 67 रचनाओं के संग्रह 'ब्रह्मविलास' में केवल एक ही रचना ऐसी है जो कवि की मौलिक कृति न होकर अनुवाद है। यह है- द्रव्य संग्रह। श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेव द्वारा रचित द्रव्य संग्रह जैन धर्मावलम्बियों में पर्याप्त लोकप्रिय है । " श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेव एक महान आचार्य और सिद्धान्त व अध्यात्म ग्रन्थों के पूर्ण पारगामी थे, इसी कारण 'सिद्धान्त - देव' उनकी उपाधि थी। उनके निश्चित समय का उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु संस्कृत टीकाकार श्री ब्रह्मदेव के कथनानुसार श्री नेमिचन्द्र
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