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ज्योतिष के छंद भैया भगवतीदास बहमुखी प्रतिभा के धनी थे। अनेक भाषाओं के साथ-साथ उन्हें ज्योतिष का भी ज्ञान था, इसका प्रमाण है उनके द्वारा रचित 'ज्योतिष के कुछ छंद'। यद्यपि 'ब्रह्मविलास' में ज्योतिष विषयक उनके केवल पाँच छंद-तीन छप्पय एवं दो दोहे ही प्राप्त होते हैं तथापि उनके ज्योतिष सम्बन्धी ज्ञान की गम्भीरता के सम्बन्ध में कोई संदेह नहीं है। कोई भी व्यक्ति किसी भी विषय पर लेखनी तब ही उठा सकता है जबकि उसका उस विषय पर अधिकार हो। कवि ने इन छंदों में ज्योतिष के मूलभूत सिद्धान्तों को पद्यबद्ध किया है। भारतीय ज्योतिष पूर्णतः वैज्ञानिक है। समस्त आकाशमंडल को ज्योतिषशास्त्र ने 27 भागों में विभक्तकर प्रत्येक भाग का नाम एक-एक नक्षत्र रखा है। जैसे अश्विनी, रोहिणी, चित्रा, आर्द्रा, स्वाति आदि। इसी प्रकार 12 राशियां मानी हैं। आकाश में स्थित भूचक्र के 360 अंश अथवा 108 भाग होते हैं। समस्त भूचक्र 12 राशियों में विभक्त है, अतः 30 अंश अथवा 9 भाग की एक राशि होती है।" ये राशियां इस प्रकार है-1 मेघ, 2 वृष, 3 मिथुन, 4 कर्क, 5 सिंह, 6 कन्या, 7 तुला, 8 वृश्चिक, धनु 10 मकर, 11 कुम्भ, 12 मीन। ज्योतिर्विदों ने इन राशियों के स्वरूप निश्चित किये हैं। और इनका सम्बन्ध मुख्य नव ग्रहों के साथ स्थापित किया है। नवग्रह इस प्रकार है- सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु। भैया भगवतीदास ने प्रथम छप्पय में वर्ष में 360 दिनों को नवग्रहों की दशाओं में विभाजित किया है। सूर्य के 20, चन्द्रमा के 50, मंगल के 28, बुध के 56, शनि के 36, बृहस्पति के 58, राहु के 46, तथा शुक्र के 70 दिन निर्धारित किये हैं। दूसरे छप्पय में कवि ने कौन सा ग्रह किस-किस राशि का स्वामी है, इसका निर्देश किया है। इनमें से सूर्य सिंह राशि के तथा चन्द्र कर्क राशि के स्वामी हैं। ये दोनों ग्रह एक-एक राशि के स्वामी हैं और मंगल-मेष तथा वृश्चिक के, शुक्र-वृष और तुला राशि के बृहस्पति-मीन और धनु राशि के, बुध-कन्या और मिथुन के तथा शनि-मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं। द्रष्टव्य है प्रस्तुत छंद
"मेष वृछिक पति भौम, वृषम तुलनाथ शुक्र सुर। मीनराशि धनराशि ईश, तस कहत देव गुरु।।
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