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की लम्बी सूची दी है, जिसमें भैया भगवतीदास तथा उनकी कृतियों का भी संक्षेप में उल्लेख किया है। डॉ. श्रीमती उषा जैन ने अपने प्रस्तुत ग्रन्थ में इन्हीं भैया भगवतीदास तथा उनके कृतित्व पर सविस्तार विचार किया है।
भैया भगवतीदास की समस्त कृतियाँ संवत् 1731 वि0 से 1755 वि0 के मध्य रचित हैं, जो 'ब्रह्म विलास' शीर्षक से स्वयं कवि द्वारा ही संग्रहीत हैं। हिन्दी-साहित्य में यह काल-खंड रीति-काल के अन्तर्गत आता है। भैया भगवतीदास की रचनाओं में अलंकारों के प्रयोग पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है। उनके द्वारा रचित 'चित्र-काव्य' भी इसी की प्रेरणा का परिणाम है। फिर भी भैया भगवतीदास को हम संत एवं भक्त कवियों के अधिक निकट पाते हैं।
भैया भगवतीदास ने श्रेष्ठ रूपक-काव्यों की रचना की है। उनकी स्तुतिपरक रचनाएँ भी उच्चकोटि की हैं। इस प्रकार एक ओर उन्होंने प्रेमगाथाकारों के रूपक काव्यों का अनुसरण किया तो दूसरी ओर कृष्ण-भक्ति शाखा के कवियों की स्तुतिपरक परम्परा को आगे बढ़ाया। उनकी रचनाओं में शांत रस की प्रधानता है। इस दृष्टि से वे कबीरदास के अधिक निकट हैं।
भैया भगवतीदास की रचनाओं में ज्ञान तथा भक्ति का सुन्दर समन्वय हुआ है। उनमें श्रेष्ठ आचरण का भी निरूपण उनका अपना वैशिष्ट्य है। दर्शन के क्षेत्र में उन्होंने जैन धर्म के सिद्धान्तों का निरूपण किया है। प्रस्तुत शोध-प्रबंध में जैन धर्म के सिद्धान्तों के सप्रमाण विवेचन के साथ भैया भगवतीदास के विचारों से उनका तारतम्य स्थापित किया गया है।
___'भैया भगवतीदास और उनका साहित्य' ग्रन्थ अनेक दृष्टियों से अप्रतिम है। इसमें एक विस्मृतप्राय कवि एवं भक्त की कीर्ति-रक्षा का स्तुत्य प्रयास किया गया है, जो लोकहित के साथ-साथ स्वयं में भी एक पुण्य कार्य है। आशा है कि विद्वज्जनों को इससे परितोष होगा।
भगवान महावीर जंयती, 2049 वि0
-डॉ० रामस्वरूप आर्य अध्यक्ष हिन्दी-विभाग वर्धमान कालेज, बिजनौर
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