________________
अभिमत
हिंदी जैन साहित्य में भैया भगवतीदास जी की रचनाएँ ‘ब्रह्मविलास' के नाम से प्रसिद्ध हैं। आध्यात्मिक कविवर भैया जी ने अपनी रचनाओं को स्वयं ही ब्रह्मविलास के नाम से संस्कारित किया था। इसमें कुछ रूपक काव्यमय हैं तो कुछ दार्शनिक एवं सैद्धान्तिक हैं। कुछ शिक्षा तथा उपदेश प्रधान हैं। चित्रकाव्य का भी भैया जी ने सृजन किया था; किन्तु उनमें भक्ति एवं अध्यात्मपरक रचनाओं का प्राबल्य है। इन सब बहुआयामी रचनाओं में विविध अलंकारों का प्रयोग करते हुए कवि ने जो अपने विशुद्ध आध्यात्मिक भावों को अभिव्यक्त किया था, उससे कवि की विपुल-प्रतिभा एवं भावाभिव्यक्ति में निपुणता का सहज ही आभास हो जाता है। उनकी रचनाओं में हृदयस्पर्शी काव्य सौन्दर्य दिखाई देता है, वह अन्यत्र दुर्लभ ही है।
भैया जी के अतिरिक्त अन्य जैन कवियों ने भी हिंदी साहित्य के भण्डार को अपनी बहुआयामी महत्वपूर्ण रचनाओं द्वारा भरा ही है; किंतु उनके प्रचार प्रसार के अभाव तथा शास्त्र भण्डारों में ही सिमट कर रह जाने के कारण वे प्रकाश में न आ सकीं। फिर हिंदी साहित्य के महारथियों द्वारा उन रचनाओं की साम्प्रदायिक कह कर पर्याप्त उपेक्षा भी की गई। जब स्वनामधन्य अध्यात्म रसिक कविवर प्रतिभाशाली विद्वान श्री पं0 बनारसीदास जी की 'अर्द्धकथानक' एवं 'नाटक समयसार' जैसी रचनाएँ साहित्य मनीषियों की दृष्टि में आयीं तब निष्पक्ष भाव से अवलोकन करने से उनका भ्रम दूर हुआ। हिंदी एवं आध्यात्मिक साहित्याकाश में कविवर बनारसीदास जी सचमुच ही एक कांतिमान नक्षत्र की भाति उदित हुए थे।
इसी संदर्भ में 18वीं शताब्दी में आगरा में कविवर भैया भगवतीदास उदित हए। जिन्होंने तथोक्त ब्रह्मविलास नाम से अपनी रचनाओं का सृजन कर हिंदी काव्य साहित्य को एक बहुमूल्य रत्न समर्पित किया।
विदुषी डॉ. श्रीमती उषा जैन ने कुछ समय पूर्व ग्रंथ भंडारों में डुबकियाँ लगाकर काव्य रत्नों में से ब्रह्मविलास को अपने शोध प्रबंध के लेखन हेतु चुना
(viii)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org