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________________ को बांधना ही चित्र काव्य है। हिन्दी शब्द सागर के अनुसार चित्रकाव्य एक प्रकार का काव्य है जिसके अक्षरों को विशेष क्रम से लिखने से कोई विशेष चित्र बन जाता है। लाला भगवान दीन चित्रकाव्य के विषय में लिखते हैं कि "इसमें अलंकारत्व नहीं है केवल कवि की चतुराई और परिश्रम का परिचय मिलता है। इस काव्य द्वारा कमल, छत्र, चक्र, चंवर, खंड, नखत, दंड, रथ, ध्वजा, हाथी, घोड़ा, मनुष्य, हंस, दर्पण, वृक्ष इत्यादि के चित्र बन सकते हैं।३० हिन्दी कवियों को चित्रकाव्य की प्रेरणा संस्कृत काव्यों से पैतृक सम्पत्ति के रूप में प्राप्त हुई। संस्कृत में चित्रकाव्य की परम्परा पर्याप्त समृद्ध एवं प्राचीन रही है। आचार्य दंडी ने 'काव्यादर्श' के तृतीय परिच्छेद में यमक चक्र के अनन्तर अठारह श्लोकों के चित्र चक्र का वर्णन किया है उनके वर्णन से यह भी प्रतीत होता है कि 'काव्यादर्श' की रचना से पूर्व भी चित्रकाव्य विश्वप्रिय था। अग्नि-पुराणकार, रुद्रट (काव्यालंकार), मम्मट (काव्यप्रकाश), रूय्यक, (अलंकार सर्वस्व), जयदेव तथा विश्वनाथ (साहित्य दर्पण) आदि आचार्यों ने चित्रबद्ध काव्य का वर्णन किया है। चित्रकाव्य की कवि-गोष्ठियों में बड़ी धाक थी। काव्य शास्त्री इसको चित्रकाव्य के अन्तर्गत स्थान देता था। कालान्तर में इसको शब्द का चमत्कार मानकर अलंकार के अर्न्तगत इसका वर्णन होने लगा। कुछ समय पूर्व श्री जुगल किशोर मुख्तार को अजमेर के एक जैन मंदिर के शास्त्र भंडार से एक संस्कृत का चित्रबंध स्तोत्र प्राप्त हुआ है जिसमें 24 तीर्थंकरों की 24 भिन्न-भिन्न चित्रालंकारों में स्तुति की गई है।31 हिन्दी कवियों ने भी इस परम्परा को अपनाया। आचार्य केशव ने 'कविप्रिया' के अन्त में सोलहवें प्रभाव में चित्रालंकार तथा प्रहेलिका आदि का विस्तार से वर्णन किया है तथा कमलबंध, धनुषबंध, सर्वतोमुख, डमरूबंध आदि के चित्र दिये हैं। जगत सिंह ने 'चित्रमीमांसा' तथा काशी-नरेश चेतसिंह के पुत्र बलवान सिंह ने सं0 1889 वि0 में 'चित्रचंद्रिका' की रचना की, जिनमें चित्रकाव्य का विस्तृत विवेचन किया गया है। भिखारीदास ने काव्य निर्णय में (इक्कीसवें अध्याय में) तथा कन्हैयालाल पोद्दार ने अन्तिम शब्दालंकार के रूप में चित्र काव्य का वर्णन किया है। जैन कवियों ने भी चित्रकाव्य की रचना की है। डॉ प्रेमसागर जैन के अनुसार 'जैन कवियों को 'चित्रबंध' से विशेष प्रेम था। उन्होंने इतने कठिन अलंकारों का प्रयोग आसान और स्वाभाविक ढंग से ही किया है।" आचार्य केशव ने चित्रालंकार को 'समुद्रवत' कहा है, जिसमें विचित्र (87) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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