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________________ और दूसरे पद में मोह और भ्रम में पड़े हुए मानव की भर्त्सना की गई है"कहा तनक सी आयु पै मूरख तू नाचे।" (20) फुटकर विषय इस रचना में विभिन्न विषयों पर कुछ छंद संगृहीत हैं। एक-एक छंद में एक-एक भाव बद्ध है। कहीं कवि ने मोह और भ्रम को सारे प्रपंच का मूल बताया है, कहीं बताया कि सम्यक्त्व के उदय होने पर कर्म कषाय कैसे क्षीण हो जाते हैं। एक छंद में कवि ने जैनधर्म में व्याप्त बाहय क्रिया कांड से सावधान रहने का, तथा एक अन्य छंद में सांसारिक धन सम्पदा और ऐश्वर्य पर गर्व न करने का संदेश निहित है। एक दोहे में कवि ने मनुष्य को घर द्वार त्यागने की अपेक्षा रागद्वेष त्यागने का उपदेश दिया है "जो घर तज्यो तो कह भयो, राग तज्यो नहिं वीर। सांप तजै ज्यों कंचुकी, विष नहीं तजै शरीर!।" यह रचना तैंतीस कवित्त छप्पय सवैया तथा छंदों में निबद्ध है। (21) परमात्म शतक प्रस्तुत कृति में कविवर भैया भगवतीदास जी ने सांसारिकता से विरत होकर परमात्म पद की प्राप्ति को ही मानव जीवन का एकमात्र लक्ष्य बताया है और उसके लिये अनेक परामर्श दिये हैं। परमपद की प्राप्ति के लिये मनुष्य को कहीं जाने की आवश्यकता नहीं। किसी की आराधना करने की आवश्यकता नहीं, अपनी ही आत्मा को कर्मविमुक्त कर परमात्मा की अवस्था तक पहुँचाना है, इस तथ्य को कवि ने कितने सरल ढंग से स्पष्ट कर दिया है "परमारथ पर में नहीं, परमारथ निज पास। परमारथ परिचय बिना, प्राणी रहै उदास।" संसार में सभी ओर इस पुद्गल (नाशवान शरीर) के प्रति मोहममता का साम्राज्य है जब जीव इसे 'पर' (पराया) समझ इससे प्रीत छोड़ देता है और आत्म शुद्धि की ओर ध्यान लगा लेता है तब उसे परमपद की प्राप्ति निश्चय ही हो जाती है। इस काव्य कृति का कला पक्ष बहुत उत्कृष्ट है, यमक अलंकार का चमत्कार तो देखते ही बनता है। सौ दोहा तथा सोरठा छंदों में बद्ध इस कृति की रचना कविवर भैया के द्वारा फाल्गुन शुक्ल तृतीया सं0 1732 वि0 को की गई है। (85) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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