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वह संसार में अत्यधिक मग्न है । कवि उससे पूछता है कि तेरे साथ यहाँ से कौन - कौन जायेगा - पुत्र, पत्नी धन या शरीर ? कोई भी नहीं जायेगा, तब जहाँ जाना है वहाँ का साथी खोज । प्रस्तुत रचना सत्ताईस कवित्त, छप्पय दोहा आदि छंदों में निबद्ध है।
(16) मूढ़ाष्टक
प्रस्तुत रचना में कवि ने संसार में मूर्ख मनुष्यों के कुछ लक्षण बताये हैं जिसमें मुख्य भाव यह है कि मूर्ख मानव अपने शुद्ध स्वभाव से तो कभी प्रीति करता नहीं पर-द्रव्यों में ही अनुरक्त रहता है यह कैसी मूर्खता है। ऐसे व्यक्ति करुणा के ही पात्र हैं। यह रचना आठ दोहा चौपाई छंदों में निबद्ध है। ( 17 ) वैराग्य पचीसिका
राग संसार का कारण है और वैराग्य मुक्ति का । 29 इस संसार में जितने भी पदार्थ हैं उनसे राग करना व्यर्थ है सब नश्वर हैं अन्त में सब साथ छोड़ देते हैं, धन परिवार यहाँ तक कि शरीर भी साथ छोड़ देता है। ऐसे संसार से क्या मोह करना। कवि जीव को सचेत करते हुए कहता है कि यह मनुष्य जीवन फिर मिलने वाला नहीं है, अतः शीघ्र ही सम्भल जा । यह रचना 25 दोहा छंदों में निबद्ध है।
( 18 ) दृष्टांत पचीसी
प्रस्तुत रचना में कवि ने भाँति-भाँति के दृष्टांत देकर पाँचों पाप (हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह) तथा रागद्वेष कुसंगति आदि के दुष्परिणाम दिखाकर मानव मात्र के चित्त को इनसे विमुख करने का प्रयास किया है। परिग्रह का दुष्परिणाम दर्शनीय है- मधुमक्खी मधु का संचय करती है तो मधु प्राप्ति के हेतु छत्ते के साथ-साथ उसको भी निचोड़ लिया जाता है। सत्गुरु का महत्व कवि ने कर्मरूपी सर्पों के लिये मोर के समान बताया है" चेतन चन्दन वृक्ष सों, कर्म सांप लपटाहिं ।। बोलत गुरुवच मोर के, सिथल होय दुर जाहिं ।। "
प्रस्तुत कृति की रचना सं0 1752 वि0 में आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की. दशमी को की गई।
( 19 ) पदराग प्रभाती
इस रचना में केवल दो ही गेय पद हैं- ' साहिब जाके अमर है सेवक सब ताके', पंक्ति से आरम्भ होने वाले पद में ईश्वर की महत्ता बताई गई है
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