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________________ नष्ट न कर देने का उपदेश देता है "अरे तैं जु यह जन्म गमायोरे।" कभी संसार के स्वार्थपूर्ण सम्बन्धों की निस्सारता देखकर उसके हृदय से यह पद निसृत होता है, 'अब मैं छाड्.यो पर जंजाल।' कभी वह स्वआत्मालोचन में डूबकर अलापने लगता है, "छाँड़ि दे अभिमान जिय रे।' कभी वह अपनी चेतना के प्रबुद्ध होने पर मगन होकर गुनगुनाने लगता है 'देखो मेरी सखीये आज चेतन घर आवै।' ये पद भैरव, देवगंधार, बिलावल, काफी, सारंग, विहाग, सोरठ, केदारा आदि अनेक राग रागनियों में बद्ध हैं। (6) मिथ्यात्व विध्वंसन चतुर्दशी प्रस्तुत रचना में सर्वप्रथम चौबीसों तीर्थंकरों की वंदना करके कवि ने मिथ्या बुद्धि जीव की अवस्था बताई है। वह अपने स्वरूप को भूल कर विषय वासनाओं में लिप्त रहता है और अपनी इसी अवस्था को वास्तविक अवस्था समझता है। जब तक परद्रव्य (पुद्गल) से उसका अनुराग नहीं छूट सकता तब तक न ही कर्मों का बंधन छूट सकता है न ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। कवि जीव को अनेक प्रकार से सम्बोधता हुआ अंत में इस भावबंधन के छूटने की कुंजी रूप इस रहस्य को उद्घाटित करता है कि मोह ही कर्मवृक्ष का मूल है। मूल को उखाड़ने पर वृक्ष स्वयं धराशायी हो जायेगा और सारी शाखाएं पत्र सहित कुम्हाला जायेंगी। यह रचना चौदह, छप्पय, कवित्त, दोहा आदि छंदों में निबद्ध हैं। (7) सिद्धचतुर्दशी प्रस्तुत रचना में कवि ने ब्रह्म और सिद्ध की एकता का प्रतिपादन करने के पश्चात् बताया है कि जीव में सिद्ध होने की समस्त शक्ति विद्यमान है। "खोल दृग देखि रूप अहो अविनाशी भूप, सिद्ध की समान सब तोपें सिद्ध कहिये।" ज्ञान वर्ण रूप रस गंध स्पर्श शब्द आदि के इन्द्रिय ज्ञान में नहीं है, ज्ञान की उपलब्धि तो आत्म स्वरूप को समझने में है। वीतराग भगवान की वाणी पर श्रद्धा रखने से शुद्ध ज्ञान की प्राप्ति होती है। रागद्वेष की संगति से ही कर्मों का बंध होता है और उससे ही जीव इस संसार में इधर उधर भटकता है। यह रचना चौदह, छप्पय, सवैया कवित्त और दोहा छंदों में निबद्ध है। (8) कालाष्टक प्रस्तुत रचना में कवि ने काल अर्थात् मृत्यु का सर्वव्यापी आतंक बताया है कि जिन तीर्थंकरों को तीनों लोक के स्वामी शीश झुकाते हैं वे भी (81) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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