SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फुटकल पद्य रचने वालों को कवि स्वीकार न करके 'सक्तिकार' की संज्ञा दी है और ब्रह्मज्ञान वैराग्य आदि का उपदेश देने वाले ज्ञानोपदेशकों को उन्होंने केवल 'पद्यकार' कहा है, किन्तु उनके कथन पर गम्भीरता से विचार करने पर इसका कारण ज्ञात हो जाता है। नीतिकारों एवं ज्ञानोपदेशकों-दोनों के ही काव्य में अनुभूति तथा रसात्मक प्रभाव का प्रायः अभाव होने के कारण ही शुक्ल जी ने ऐसा कहा है और यह उचित ही है। पहले ही कहा जा चुका है कि सौंदर्य तत्व की उपेक्षा करने वाला साहित्य ललित साहित्य की सीमा से बाहर ही रह जाता है। 'वाक्यं रसात्मकं काव्यं' के अनुसार रसात्मकता काव्य की आधारशिला है, अतः नीति अथवा उपदेश जब 'सरसता' के साथ प्रस्तुत किये जाते हैं तब वे साहित्य के अंतर्गत स्वीकृत ही नहीं होते वरन उच्चकोटि के काव्य बन जाते हैं। शुक्ल जी ने स्वयं इस तथ्य को स्वीकार किया है।25 इसके अतिरिक्त साहित्य में उपदेश जितना ही परोक्ष रहेगा उतना ही वह उच्च कोटि का माना जायेगा। बंगला के प्रसिद्ध लेखक बंकिमचन्द्र ने भी कहा है कि, 'कवि संसार के शिक्षक हैं, किन्तु नीति की व्याख्या करके शिक्षा नहीं देते। वे सौंदर्य की चरमसृष्टि करके संसार की चित्तशुद्धि करते हैं। कवि आंडेन भी काव्य का कर्त्तव्य, उपदेश देना नहीं मानता तथापि अच्छे-बुरे से हमें सचेत कर देना साहित्य का आदर्श अवश्य मानता है।26 इस प्रकार साहित्य में उपदेशात्मकता के महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। साहित्य समाज का दर्पण होने के साथ-साथ उसके लिये युग-दीप का कार्य भी करता है। साहित्यकार अपने अनुभव रूपी दीपक के प्रकाश में जन सामान्य का पथ-प्रशस्त करना चाहता है। डॉ भोलानाथ तिवारी के शब्दों में"इसकी (नीति की) एक-एक बात जीवन के खरे अनुभवों से सिक्त है और एक ओर यदि वह भूत के अनुभवों का सार है तो दूसरी ओर वर्तमान और भावी समाज की प्रदर्शिका है।" साथ ही इस तथ्य को भी स्वीकर करना पड़ेगा कि साहित्य में उपदेशात्मकता प्रकट न होकर जितनी प्रच्छन्न रूप में विद्यमान होगी उतना ही वह काव्य श्रेष्ठ माना जायेगा। साहित्य में उपदेशात्मकता की प्रवृत्ति हमारे यहाँ प्रारम्भ से ही रही है। संस्कृत में ऋग्वेद, ईशावास्योपनिषद, तैत्तरीय, कठोपनिषद् आदि में यत्र-तत्र नीति-वाक्य बिखरे हुए हैं, महाभारत में धौम्य नीति, विदुरनीति, भीष्मनीति तथा स्मृतियों में मनुस्मृति का एक-एक श्लोक उपदेश से परिपूर्ण है। चाणक्य-नीति, भर्तृहरि का नीति-शतक तथा पंचतंत्र की कथाएं तो इस दृष्टि (78) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy