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________________ जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप (८०) ऐसा कहने से ममत्व प्रकट होता है अत: चोरी का दोष लगता है। अतः इन दोषों से बचने के लिए सधर्माविसंवाद भावना वतलाई गई ब्रह्मचर्य महावत ब्रह्मचर्य योग के लिए आधार बिन्दु है, ब्रह्मचर्य की साधना किये बिना योग मार्ग पर एक भी कदम आगे रखना नामुमकिन ही नहीं असम्भव ही है। जब तक साधक ब्रह्मचर्य की साधना नही करता तब तक वह उर्ध्वरेता नहीं बन सकता। आचार्य शुभचन्द्र ने ब्रह्मचयं महानत का गहन एवं विस्तृत विवरण देते हुए उसका इस प्रकार से निरूपण किया है विदन्ति परमं ब्रह्म यत्समालम्ध्य योगिनः । तदअतं ब्रह्मचर्य स्याद्धीरधौरेयगोचरम् ॥... योगी की साधना का तेज बिन्दु ब्रह्मचर्य ही है, इसी से उसकी तपः साधना में तेज बढ़ता है और तैजस शरीर बलवान बनता है उसमें चमक और प्रकाश की किरणें प्रस्फुटित होती हैं।x इसीलिए योगियों को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने के लिए कहा गया है उनको काम से बचने के लिए विवेक अर्थात भेदज्ञान का उपाय बतलाया है। ब्रह्मचर्य महाव्रत की स्थिरता के लिए पाँच भावनायें बतलाई गई हैं ।* १- स्त्री कथा वर्जन योगी के लिए स्त्री की कथा कहने व सुनने दोनों का ही निषेध है अतः योगी को इसका उल्लघन नहीं करना चाहिये अपितु पूर्ण ... ज्ञानार्णव, सर्ग ११ श्लोक १ x योगदर्शन २/३८ * [क)आचाराड्.ग सूत्र, द्वितीय श्रुतस्कन्ध, अध्ययन १५, सूत्र ७८६-८७ (ख] स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्ग निरीक्षणपूर्वरतानुस्मरण वृयेष्टरस स्वशरीर संस्कारत्यागाः पञ्च। (तत्वार्थसूत्र ७/७)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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