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जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप (७५) परिभोगैषणा इन तीन एषणाओं में दोष न लगने देना, निर्दोष वस्तु के उपयोग का ध्यान रखना एषणा समिति भावना का लक्षण है। . आदान निक्षेपण समिति भावना
शयया, आसन, उपधान, शास्त्र और उपकरण आदि को पहिले भली प्रकार उठाये या रक्खे ये आदान निक्षेपण समिति भावना का लक्षण है। उत्सर्ग समिति भावना
__ जीव रहति पृथ्वी पर मल-मूत्र श्लेष्मादिक को बड़े यत्न से क्षेपण करना, खानपान की वस्तुओं को देखभाल कर लेना, स्वाध्याय आदि करके, गुरू आज्ञा प्राप्त करके, संयमवृद्धि के लिए शान्त एवं समत्व भाव से स्तोक मात्र आहार ग्रहण करना उत्सर्ग समिति भावना का लक्षण है 1+
तत्वार्थसत्र के अनसार ये पाँच भावनायें इस प्रकार है १- वाग्गुप्ति २- मनोगुप्ति, ३- ईर्यासमिति, ४- आदाननिक्षेपणसमिति और ५आलोकित पान भोजन इनमें से ईर्यासमिति, आदान निक्षेपणसमिति और मनोगुप्ति का स्वरूप कहा जा चुका है। बाग्गुप्ति का अर्थ वचन की प्रवृत्ति को रोकना है तथा आलोकिपतान भोजन का अर्थ भोजन-पान ग्रहण करते समय देखने और शोधने का ध्यान रखना है। सत्य महावत
इसका आगमोक्त नाम 'सर्वमृषावादविरमण' है । सत्य, योग का प्रकाश दीप है । श्रमयोगी की सम्पूर्ण चर्या, साधना और उपासना यहाँ तक कि उसके जीवन के अण-अणु में प्रकाश एवं तेजस्वितासन्य ही देता है। श्रमयोगी के हृदय में सत्य का दीपक सदैव प्रज्वलित रहता है।
योगी बिल्कुल भी असत्य आचरण नहीं करता, लेकिन जो वचन + आचाराड्.ग, द्वितीय श्रु त स्कन्ध, अध्ययन १५, सूत्र ७७८ 18 (क] वाड्.मनोगुप्तीर्यादान निक्षेपण समित्यालोकितपानभोजनानि पञ्च । (तत्वार्थसूत्र ७/४) (ख) मूलाराधना ३३७ (ग) चारित्तपाहुड ३१