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७४) जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन
रक्षा ही अहिंसा है। प्राण दस हजार के हैं १- श्रोत्रन्द्रिय प्राण, २. चक्षुरिन्द्रिय प्राण, ३- प्राणन्द्रिय प्राण, ४- रसनेन्द्रिय प्राण, ५स्पर्शनेन्द्रय प्राण, ६- मनोबल प्राण, ७- वचनबलप्राण, ८. कायबल प्राण, ६- श्वासोच्छवास प्राण, १०. आयू प्राण । इन प्राणों को धारण करने वाले को प्राणी कहते है । महाव्रत की भावनायें उनकी स्थिरता के लिए है । = पाँच महाव्रत की पच्चीस भावनायें है। प्रत्येक महाव्रत की पांच भावनायें है।*
अहिंसा महाव्रत की पाँच भावनायें ये हैईर्या समिति
ईर्या भाषणादान निक्षेपोत्सर्ग संज्ञकाः ।
सद्भिः समितयः पञ्च निर्दिष्टाः संयतात्मभिः ।।.... अर्थात सयमित आत्मा वाले सत्पुरुषों ने ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपण और उत्सर्ग ये पाँच समितियाँ कही हैं।
___ स्वयं को या अन्य किसी भी प्राणी को तनिक भी कष्ट या पीडा न हो इसलिए जीवों की रक्षा करते हुए देखभाल कर मार्ग पर चलें, ये ईर्या समिति भावना का लक्षण है। मनोगुप्ति भावना
मन को सदा शुभ और शुद्ध ध्यान में लगाये रखना; गुणी एवं ज्ञानी जनों के प्रति प्रमोद भाव और अधर्मी पापी जनों के प्रति दया भाव, हितकारो, मर्यादा सहित वचन बोलना ये मनोगप्ति भावना का लक्षण हैं। एषणा समिति भावना
वस्त्र, पात्र, आहार, स्थान आदि वस्तुओं की गवेषणा, ग्रहणैषणा, = तत्स्थैर्यार्थ भावनाः पञ्च पञ्च । (तत्वार्थसूत्र ७/३) A उत्तराध्ययन ३१/१७
महाव्रत विशुद्धयर्थ भावनाः पञ्चविंशतिः। . परमासाद्य निर्वेद पदवीं भव्य भावय ।। (ज्ञानार्णवः १०/२)
* आचाराड्.ग २।३।१५।४०२ .... ज्ञानार्णव १८।३
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