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ध्यान का प्ररूपक जैन साहित्य (५३)
है । राजा श्रेणिक के प्रश्न पर गौतम गणधर ने जो ध्यान का व्याख्यान किया था उसका आदि-पुराण के २१ वें पर्व में विस्तार से वर्णन किया गया है । प्रस्तुत ग्रन्थ में ध्यान के चारों भेदों का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। आचार्य जिनसेन का समय 8 वीं शती के लगभग है।+
हरिवंश पुराण
पुन्नाट संघीय आचार्य जिनसेन कृत यह महान् ग्रन्थ संस्कृत श्लोकों में बद्ध है । इस ग्रन्थ में ६६ सर्गं और लगभग १०,००० श्लोक हैं । इस ग्रन्थ को महापुराण भी कहा जाता है । इसके ५६ वें सर्ग में ध्यान के दस भेदों का उल्लेख किया गया है। वहाँ पर आर्तध्यान और रौद्र ध्यान को अत्रशस्त ध्यान और धर्मध्यान शुक्लध्यान को प्रशस्त ध्यान कहा है ।
+ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष, भाग १
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