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(५२) जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन
अधिकार प्रकरण में मुख्यतः गीता एवं पातञ्जल योगसूत्र के विषयों के सन्दर्भ में जैन योग परम्परा के प्रसिद्ध ध्यान के भेदों का समन्वयात्मक विवेचन है। योगसार बत्तीसी-x ____ इस ग्रन्थ में ३२ प्रकरण है जिनमें आचार्य हरिभद्र के मोगग्रन्थों की ही विस्तृत एवं स्पष्ट रूप से इन्होंने व्याख्या की है। ध्यान दीपिका:
इस ग्रन्थ के प्रणेता देवेन्द्रनन्दि है। यह ग्रन्थ वि० सं० १७६६ में गुजराती भाषा में लिखा गया है। इसमें छह खण्ड है, जिनमें बारह भावना, रत्नत्रय, महाव्रत, ध्यान, मन्त्र तथा स्थाद्वाद का वर्णन किया गया है। ध्यान विचार
इस ग्रन्थ के ग्रन्थकार भी अज्ञात है लेकिन इसकी हस्तलिखित प्रति पाटन के शास्त्र भण्डार में है। यह गद्य के रूप में लिखी गई है। इसमें भावना, ध्यान, अनुप्रेक्षा, भावना योग, काय योग एवं ध्यान के २४ भेदों का निरूपण है। अध्यात्म तत्त्वालोकः
इसके ग्रन्थकार मुनि न्याय विजय हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ में आठ प्रकरण है। प्रथम एवं द्वितीय प्रकरण में आत्मा के विकास एवं गुरुजनों की पूजा का वर्णन है। तृतीय में योग के आठ प्रकार बतलाये हैं। चतुर्थ एवं पंचम प्रकरण में कषायों पर विजय एवं ध्यान सामग्री का वर्णन है। छठे प्रकरण में ध्यान के चार प्रकारों की विस्तत व्याख्या है। सातों व आठवें प्रकरण में योग की विभिन्न श्रेणियों एवं ज्ञानियों के आत्मतत्व पहचानने के उपाय बतलाये हैं। आदि-पुराण
आचार्य जिनसेन द्वारा विरचित आदि पुराण एक पौराणिक ग्रन्थ है । वह आदि-पुराण और उत्तर-पुराण इन दो विभागों में विभक्त x सटीक, प्रकाशक, जैन धर्म प्रसारक मण्डल, भावनगर ।