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________________ (५०) जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन का रहस्य भरा हआ है। जैनियों में यह एक अद्वितीय ग्रन्थ है। ग्रन्थ की भाषा, कविता और पदलालित्य आदि को देखते हए ग्रन्थकार की प्रतिभा का पता सहज में लग जाता है । ग्रन्थ में प्रमुखता से ध्यान की प्ररूपणा तो की गई है, पर साथ में उस ध्यान की सिद्धि में निमित्त भूत अनित्यादि भावनाओं, अहिंसादि महायतों और प्राणायामादि अन्य अनेक विषय चचित हुए हैं। ज्ञानार्णव की एक दो संस्कृत टीकायें सुनी हैं, परन्तु अभी तक देखने में नहीं आयी । केवल इसके गद्य भाग मात्र की एक छोटी सी टीका श्री श्र तसागरसूरिकृत प्राप्त हुई है ।.... अध्यात्म रहस्य: इस ग्रन्थ के रचियता पं० आशाधर जी हैं। उन्होंने वि० सं० १३०० में अपने अनगार धर्मामृत ग्रन्थ की स्वोपज्ञ टीका पूरीको और उसमें इस ग्रन्थ का उल्लेख किया है । * इसको देखकर ऐसा लगता है कि उससे कुछ समय पहले ही इस ग्रन्थ की रचना हुई होगी। इस ग्रन्थ में ७२ पद्य है । प्रस्तुत ग्रन्थ में अध्यात्मयोग को विशेष रूप से चर्चा की गई है। उसके सन्दर्भ में ही आत्मा व परमात्मा से सम्बन्ध रखने वाले गूढ़ तत्वों का भी वर्णन है। इसमें कर्म, ध्यान आदि विषयों का भी विवेचन है । ध्यान का इस ग्रन्य में सूक्ष्म रूप से वर्णन किया गया है। योगशास्त्र: प्रस्तुत ग्रन्थ के रचियता सुप्रसिद्ध हेमचन्द्र सूरि है।+ इस ग्रन्थ का समय वि० १२ वीं शती माना गया है। यह योग विषयक एक अति महत्वपूर्ण ग्रन्थ है, जो बारह भागों में विभक्त हैं। यह एक हजार श्लोक प्रमाण है। प्रथम तीन भागों में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्याचारित्र स्वरूप रत्नत्रय का वर्णन किया है। चौथे अध्याय में .... ज्ञानाणंवः पृ० २० x अध्यात्मरहस्य, जुगल किशोर मुख्तार द्वारा सम्पादित, वीर सेवा मन्दिर, दिल्ली। * अध्यात्म रहस्य, प्रस्तावना, पृ० ३४ + जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष, भाग ३
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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