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________________ ध्यान का प्ररूपक जैन साहित्य (४६) शुश्रूषा, श्रवण, बोध, मीमांसा, प्रतिपत्ति और प्रवृत्ति-इन आठ चित्त गुणों का निरूपण है। योगसाधमा द्वारा क्रमशः स्वानुभूतिरूप परमानन्द की प्राप्ति का निरूपण है। इस ग्रन्थ पर योगदीपिका नाम की एक वत्ति है जिसके लेखक यशोविजय गणि हैं। इस पर यशोभद्रसूरि का विवरण भी है। ज्ञानसारः इस ग्रन्थ के रचियता मुनि पद्मनन्दि हैं। जिनका समय विक्रम सं० १०८६ है। इसमें कुल ६३ गाथायें हैं। यद्यपि इस ग्रन्थ के वर्ण्य विषय ज्ञानाण व के ही अनसार हैं और इसमें ध्यान के भेद-प्रभेदों, विविध प्रकार के मन्त्र एवं जण, शुभ-अशुभ के फल आदि का वर्णन हआ है; तथापि इन विषयों के प्रतिपादन में रोचकता एवं स्पष्टता अधिक है। पाहुडदोहा: इस ग्रन्थ के रचियता मुनि रामसिंह है। डॉ० हीरालाल जैन के अनुसार इनका समय ई० सन् ६३३ और ११०० के बीच अर्थात् १००० के आसपास होना चाहिये। यद्यपि इस ग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय परमात्म प्रकाश तथा योगसार से साम्य रखता है, तथापि इस ग्रन्थ में दहत से ऐसे दोहे हैं जिनमें बाह्य क्रियाकाण्ड की निष्फलता तथा आत्म संयम और आत्मदर्शन में ही सच्चे कल्याण का उपदेश है। झठे जोगियों को खूब फटकारा है। इसमें योग एवं तन्त्र सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दों के भी दर्शन होते हैं, जैसे-शिवशक्ति देहदेवली, सगुण निगुण, दक्षिण मध्य आदि । इस ग्रन्थ में २२२ दोहे हैं। यह अपभंश भाषा में है। ज्ञानार्णवः___आचार्य शुभचन्द्र विरचित ज्ञानार्णव ध्यान विषयक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है शुभ चन्द्र संभवत: राजा भोज के काल में अर्थात् विक्रम की १३ वीं शती में हुए हैं। इस ग्रन्थ में ४२ प्रकरण है। पद्य संख्या लगभग २२३० है। इसका दूसरा नाम योगार्णव है। इसमें योगीश्वरों के आचरण करने योग्य, जानने योग्य सम्पूर्ण जैन सिद्धान्त + भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० ११६ X ज्ञानार्णव पृ. २०
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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