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________________ ध्यान का प्ररूपक जैन साहित्य (४७) ४- तद्वतु तथा ५- अमत अनुष्ठान । इसमें प्रथम के असदनुष्ठान है तथा अन्तिम के दो अनुष्ठान सदनुष्ठान हैं और योग अधिकारी व्यक्ति को सदनुष्ठान ही होता है । योगदृष्टि समुच्चय: प्रस्तुत ग्रन्थ में २२८ संस्कृत पद्य हैं। इसमें वर्णित आध्यात्मिक विकास, का क्रम परिभाषा, वर्गीकरण और शैली की अपेक्षा से योगविन्दु से अलग दिखाई देता है । योगबिन्दु में प्रयुक्त कुछ विचार इसमें शब्दान्तर से अभिव्यक्त किये गये हैं और कुछ विचार अभिनव भी हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में योगबिन्दु में प्रयुक्त अचरमावर्त काल को 'ओघदृष्टि' और चरमावर्त काल को 'योगदष्टि' कहा है। इसमें योग के अधिकारियों को तीन विभागों में विभक्त किया गया है। प्रथम भेद में आरम्भिक अवस्था से लेकर विकास की चरम-अन्तिम अवस्था तक की भूमिकाओं के कर्ममल के तारतम्य की अपेक्षा से आठ विभाग किये हैं १- मित्रा, २- तारा, ३- बला, ४. दीप्रा. ५- स्थिरा, ६- कान्ता ७ प्रभा, ८- परा।। द्वितीय विभाग में योग के तीन भेद किये गये हैं १- इच्छा-योग, २- शास्त्र योग, ३. सामथ्यं योग। तृतीय भेद में योगी को चार भागों में बाँटा है १- गोत्र योगी २- कुल योगी, ३- प्रवृत्त-चक्र योगी, ४- सिद्ध योगी। प्रथम वर्गीकरण में निर्दिष्ट आठ योग दृष्टियों में ही १४ गुणस्थानों की योजना कर ली गयी है। ____ इस ग्रन्थ पर स्वयं ग्रन्थकार ने स्वोपज्ञवृत्ति रची है, जो ११७५ श्लोक प्रमाण है। इस ग्रन्थ पर एक और वत्ति की रचना हुई, है जिसके लेखक सोमसुन्दरसूरि के शिष्य साधुराजगणि हैं। यह ग्रन्थ ४०५ श्लोक प्रमाण है ... योगशतक: प्रस्तुत ग्रन्थ अपने नाम के अनुसार १०१ प्राकृत गाथाओं वाला है। इस ग्रन्थ का विषय निरूपण की दृष्टि से योगबिन्दु के अधिक निकट है। ग्रथ के प्रारम्भ में योग का स्वरूप दो प्रकार का बतलाया .... जैन साहित्य का वृहद इतिहास, भाग-४, पृ. २३७
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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