SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्यान का प्ररूपक जैन साहित्य (४५) तत्त्वानुशासन-ध्यान शास्त्र: इस ग्रन्थ के लेखक रामसेन आचार्य हैं जिनका समय अंतरंग एवं बहिरंग दोनों परीक्षणों से विक्रम की १० वीं शताब्दी का प्रायः अन्तिम चरण निर्धारित होता है ।... इस ग्रन्थ का प्रधान विषय 'ध्यान' है, इसलिये इसको 'ध्यान-शास्त्र' भी कहते हैं । यह अध्यात्म विषय की एक बड़ी ही महत्वपूर्ण कृति है । ध्यान द्वारा ध्यवहार तथा निश्चय दोनों प्रकार का मोक्ष मार्ग सिद्ध होता है । इसमें ध्यान के चारों भेदों-प्रभेदों का विस्तृत रूप से विवरण दिया गया है। मोक्ष प्राप्ति के लिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यकचारित्र की अनिवार्यता निरूपित है । मन की एकाग्रता के लिए ध्यान का महत्व बतलाया गया है, मन्त्र, जप, आसन आदि का भी वर्णन किया गया है। इसमें २५६ पद्य हैं। योगसार प्राभतx: . इस ग्रन्थ के रचियता मुनि अमितगति हैं । इस ग्रन्थ में ५४० श्लोक हैं। इनका रचनाकाल ई० १० वीं शताब्दी है। इनमें ६. अधिकार हैं १- जीव, २- पुद्गल, ३- आस्व, ४- बन्ध, ५- संवर ६- निर्जरा, ७- मोक्ष, ८- चारित्र, ६. चलिका । इस ग्रन्थ में योग सम्बन्धी विषय का विस्तृत वर्णन है। इनके अतिरिक्त जीव-कर्म का सम्वन्ध, कर्म के कारण, कर्म से छटने के उपाय, ध्यान, चारित्र आदि का भी वर्णन है। अन्त में मोक्ष के सम्बन्ध में भी प्रकाश डाला गया है। मुनि एवं श्रावक के व्रतों की भी चर्चा है। हरिभद्र का योगविषयक साहित्य: . जैन आचार्य हरिभद्र सूरि का समय ई० ५८० माना गया है।* .... तत्वानुशासन, प्रस्तावना, प०१४ X (अ) हिन्दी अनुवाद के साथ पन्नालाल बाकलीवाल द्वारा सम्पादित, कलकत्ता, प्रथम संस्करण, १६१८ (ब) भाष्य के साथ जुगल किशोर मुख्त्यार द्वारा सम्पादित, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी, सन १६६६ * जैनेन्द्र सिद्धांत कोष, भाग ४
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy