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________________ ध्यान का प्ररूपक जैन साहित्य [४३) इष्टोपदेश: __ योगविषयक आचार्य पूज्यपाद की यह दूसरी रचना है। यह एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इष्टोपदेश ५१ श्लोकों की एक छोटी सी रचना है। इसमें ध्यान के चार प्रकार बतलाये गये हैं। इसके साथसाथ साधक की उन भावनाओं का भी उल्लेख है, जिनके चिन्तन से वह अपनी चंचल वत्तियों को तजकर अध्यात्म मार्ग में लीन होता है तथा बाह्य व्यवहारों का निरोध करके आत्मानुष्ठान में स्थिर होकर परमानन्द की प्राप्ति करता है। पंचास्तिकाय म यह ग्रन्थ कुन कुन्दाचार्य के ग्रन्थों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है । इस ग्रंथ म १७३ गाथायें है। इसमें काल द्रव्य से भिन्न जीव पुद्गल धर्म अधर्म और आकाश नाम के पाँच द्रव्यों का विशेष रूप से वर्णन है। पाँच अस्तिकायों के स्वरूप का ध्यान संस्थानविषय धर्म ध्यान के अंतर्गत आता है। इस ग्रन्थ पर अमतचन्द्राचार्य और जयसेनाचार्य की खास संस्कृत टीका है तथा कुछ टीकाएं कन्नड़, हिन्दी आदि की भी उपलब्ध हैं।.... समयसार यह ग्रन्थ भी आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित है। इस ग्रन्थ का विषय शुद्ध आत्मतत्व है । जो कि ध्याता का प्रमुख लक्ष्य है। इसमें आत्मा के तीन भेद बतलाते हुए उनके विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। यह ग्रन्थ अपने विषय में बहुत ही महत्वपूर्ण एवं प्रामाणिक है। इसमें ४१५ गाथायें हैं। इस पर भी अमतचन्द्राचार्य एवं जयसेन कृत संस्कृत टीकायें है।X अमृतचन्द्राचार्य की टीकानसार इसमें ४१५ गाथायें है, जबकि जयसेनाचार्यानुसार इसमें ४३६ गाथायें परमात्म प्रकाश.. इस अपभंश ग्रन्थ के रचियता योगीन्दु देव हैं। डा. हीरालाल ... जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, पृ० ६१ X नेन्द्र सिद्धांत कोश, भाग ४
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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