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________________ ध्यान का प्ररूपक जैन साहित्य (४१) निर्देश देखा जाता है, पर वह सम्भव नहीं दिखता है। इसका कारण यह है कि हरिभद्र सूरि ने अपनी आवश्यक नियुक्ति की टीका में समस्त ध्यान शतक को शास्त्रान्तर स्वीकार किया है तथा समस्त गाथाओं की व्याख्या स्वयं की है, पर यह किसके द्वारा रचा गया है इसके सम्बन्ध में उन्होंने कुछ भी नहीं कहा है। इसके अतिरिक्त हरिभद्र सूरि की उक्त टीका पर टिप्पणी लिखने वाले आचार्य हेमचन्द्र सरि ने भी उसके रचियता के विषय में कोई भी टिप्पणी नहीं की। प्रस्तुत ग्रन्थ में ध्यान के चारों प्रकारों का वर्णन है। प्रथम दो ध्यान मार्त और रौद्र कषाय तथा वासनाओं को बढ़ाते है, ये अप्रशस्त ध्यान हैं तथा अन्य दो ध्यान धर्य और शवल प्रशस्त ध्यान हैं एवं मोक्ष के कारण भूत है। धर्म्य ध्यानमोक्ष का सीधा कारण नहीं है। वह शुक्ल ध्यान का सहयोगी मात्र है। शक्ल ध्यान मोक्ष का सीधा कारण है। इस ग्रन्थ में बतलाया गया है कि जीव को कषायें, वासनायें एवं लेश्यायें कैसे बाँधती हैं। इसमें आसन, प्राणायाम, अनुप्रेक्षाओं का भी वर्णन है। तत्वार्थ सूत्रः ___ इस ग्रन्थ के प्रणेता आचार्य उमास्वाति या उमास्वामी है। इनका समय विक्रम की पहली और चौथी शती के बीच में आंका जाता है।* इस ग्रन्थ को देखकर ऐसा लगता है कि मानो सारा जैन दर्शन इसमें समाविष्ट हो गया हो। इस ग्रन्थ पर श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों आम्नाओं के आचार्यों ने अनेक टीकायें व भाष्य लिखे हैं। यह मोक्ष मार्ग को दर्शाने वाला एक अद्वितीय सूत्र ग्रन्थ है। इसमें दस अध्याय हैं । पहले अध्याय में ज्ञान एवं क्रिया का वर्णन है। दूसरे से लेकर पाँचवे अध्याय तक ज्ञय का और छठे से लेकर दसों तक चरित्र का वर्णन है। ध्यान के निरूपण में प्राय: चारित्र का ही वर्णन होता है क्योंकि ... गणधरवाद, प्रस्तावना, प०४५ x शुक्लशुचि निमंलं सकलकर्मक्षयहेतुत्वाद् । (योगशास्त्र प्रकाश ४, श्लोक ९५, स्वोपज्ञ विवरण) * तत्वार्थ सूत्र (पं० सुखलाल-विवेचन] प्रस्तावना, पृ० ६ A वही पृ. ६
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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