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________________ ध्यान का प्ररूपक जैन साहित्य (३६) सामग्री है । परन्तु आचार्य हरिभद्र ने परम्परा से चली आ रही वर्णन शैनी को परिस्थिति एवं लोकरुचि के अनरूप नया मोड़ देकर अभिनव परिभाषा करके जैन योग साहित्य में अभिनव युग को जन्म दिया। नीचे हम ध्यान के प्ररूपक प्रमुख ग्रन्थों का परिचय दे रहे हैं। मूलाचार:___आचार्य वट्टकेर विरचित मूलाचार - मुनि आचार विषयक एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह बारह अधिकारों में विभक्त है । उसके पंचाचार नामक पांचवे अधिकार में तप आचार की प्ररूपणा करते हुए आभ्यन्तर तप के जो छह भेद निर्दिष्ट किये गये हैं उसमें पाँचवा ध्यान है । इस ध्यान की वहाँ संक्षेप में प्ररूपणा की गई है। वहाँ सर्वप्रथम ध्यान के आर्त, रौद्र, धर्य व शक्ल इन चार भेदों का निरूपण किया है तथा रौद्र व आर्त ध्यान को अप्रास तया धर्म, एवं शुक्ल ध्यान को प्रशस्त बतलाया है तथा इन दोनों ध्यानों को ही मोक्ष का हेतु कहा है। आगे इन चार भेदों के प्रभेदों का वर्णन किया है। आचार्य वट्ट केर का समय लगभग-प्रथम-द्वितीय शती माना जाता है। यह ग्रन्थ प्राकृत गाथा बद्ध है ।... भगवती आराधना:__इस ग्रन्थ के कर्ता शिवार्य या शिवकोटि नाम के आचार्य हैं, जिन्होंने ग्रन्थ के अन्त में आर्य जिननन्दिगणी सर्वगुप्तगणी और आर्यमित्रनन्दि का अपने विद्या अथवा शिक्षा गुरु के रूप में उल्लेख किया किया है। यह सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान सम्यक चारित्र और सम्यक तपरूप चार आराधनाओं पर, (जो मुक्ति को प्राप्त कराने वाली हैं ) एक अति महत्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थ है, जो जैन समाज में सर्वत्र प्रसिद्ध है । यह ग्रन्थ मुनिधर्म से सम्बन्ध रखता है। जैन धर्म में समाधिपूर्वक मरण की सर्वोपरि विशेषता है। मुनि हो या धावक सभी का लक्ष्य उसी ओर रहता है। भगवती आराधना ग्रन्थ मरण के भेद-प्रभेदों से भरा पड़ा है। इसमें मरण के पाँच भेद बतलाये .... जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग-३ x जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, पृ० ४८५(पं० जुगलकिशोर मुख्तार)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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