________________
द्वितीय परिच्छेद ध्यान का प्ररूपक जैन स
संस्कृत साहित्य का विशाल भण्डार प्राचीन काल के तीन प्रमुख सम्प्रदायों वैदिक, जैन एवं बौद्ध सम्प्रदाय के विद्वानों के अथक प्रयास एवं लगन से समृद्ध हुआ है । वैदिक सम्प्रदाय के समान जैन सम्प्रदाय का संस्कृत साहित्य के प्रत्येक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है । जैन मनीषियों ने आध्यात्मिक विषय में भी संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी आदि भाषाओं में ग्रन्थ लिखे हैं। जैनागमों में योग के स्थान पर 'ध्यान' शब्द प्रयुक्त हुआ है । कुछ आगम ग्रन्थों में ध्यान के लक्षण, भेद प्रभेद आलम्बन आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है।+ आगम के बाद नियुक्ति का क्रम आता है। उनमें भी आगम में वर्णित ध्यान का ही स्पष्टीकरण किया गया है ।
आचार्य उमास्वाति ने 'तत्वार्थ सूत्र' में ध्यान का वर्णन किया है, परन्तु उनका वर्णन आगम से भिन्न नहीं है। - उन्होंने आगम एवं नियुक्ति में वर्णित विषय से कुछ अधिक नहीं कहा है। जिन भद्रगणी क्षमाश्रमण का 'ध्यान शतक' आगम की शैली में लिखा गया है ।* आगम युग से लेकर यहाँ तक योग विषयक वर्णन में आगम शैली की ही प्रमुखता रही है षटखण्डागम की धवला टीका में भी ध्यान विषयक प्रभूत
+ (क) स्थानाड्ग सूत्र, ४, १ [ख) समवायांग सूत्र ४, (ग) भगवती सूत्र, २५,७ (घ) उत्तराध्ययन सूत्र, ३०, ३५ RF आवश्यक नियुक्ति, कायोत्सर्ग अध्ययन, १४६२-८६ -तत्वार्थ सुत्र, ६,२७ * हरिभद्रीय आवश्यक वृत्ति, पृष्ठ ५८१ x षट्खंडागम, धवला टीका, १४/५/४/२६/१२/६४