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भारतीय परम्परा में ध्यान (३७)
नियमों का पूरी तरह से पालन करना चाहिए, क्योंकि संयम के बिना ध्यान अथवा समाधि लगाना फूटे घड़े में पानी भरने के समान व्यर्थ है। जब साधक चित्त को एकाग्र कर लेता है तो वह समाधि-मार्ग में प्रवेश कर लेता है।
इस प्रकार साधक अपने साधना पथ पर स्थल सूक्ष्म की से ओर बढ़ता चला जाता है । वास्तव में ध्यान की यह प्रक्रिया एक जंजीर में गुत्थी हुई प्रक्रिया है, जो स्थूल से सूक्ष्म की ओर चलती है, जिसके द्वारा साधक पूर्ण शील, पूर्ण समाधि एवं पूर्ण प्रज्ञा की प्राप्ति में सफल हो जाता है।