________________
भारतीय परम्परा में ध्यान [३१]
अत: चित्त की एकाग्रता के लिए चित्त की समस्त वत्तियों का निरोध जरूरी है है चित्त वत्तियों का निरोध ही योग है । ये वत्तियां संसार में प्रवृत्तियों के कारण उत्पन्न होती हैं जो धर्माधर्म तथा वासनाओं आदि को जन्म देती हैं । चित्त की ये वत्तियां पाँच प्रकार की हैं = १- प्रमाण, २- विपर्यय, ३- विकल्प, ४- निद्रा तथा ५- स्मति ।
जिनके द्वारा मनुष्य विविध ज्ञान अजित करता है, वे प्रमाण हैं। प्रत्यक्ष. अनुमान, उपमान तथा शब्द आदि प्रमाण कहलाते हैं। इन वत्तियों के अतिरिक्त 'योगसत्र' में क्लेश के निरोध का वर्णन किया गया है। क्लेश के भी पांच भेद हैं।A १- अविद्या, २- अमिता ३- राग, ४- द्वेष तथा ५- अभिनिवेश । समस्त वृत्तियों एवं क्लेशों के निरोध के लिए दो साधन बतलाये गये हैं १- अभ्यास तथा २. वैराग्य ।* पातञ्जल योगदर्शन के अनुसार चित्त वृत्तियों का निरोध अभ्यास से ही हो सकता है । अगर उसमें वैराग्य ही कारण हो, तो सिद्धियों की प्राप्ति कैसे होगी । अर्थात् अगर भीतर रहते हए चित्त एकाग्र और निरुद्ध होता है, तो उसमें राग के कारण सिद्धियां प्रकट होती है, क्योंकि संयम (धारणा, ध्यान, समाधि) किसी न किसी सिद्धि के लिए किया जाता है... और जहाँ सिद्धि का उद्देश्य है, वहां राग का अभाव कैसे हो सकता है? परन्तु जहाँ केवल परमात्म तत्व का उद्देश्य होता है, वहाँ ये धारणा, ध्यान एवं समाधि भी सहायक हो जाते हैं। मन की स्थिरता के लिए बहुत बार प्रयास करना अभ्यास कहलाता हैx एवं लौकिक-अलौकिक विषयों के प्रति मोह या भमत्व का न होना वैराग्य कहलाता है ।*
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः । योगसूत्र १/२ = प्रत्यक्षानुमनागमाः प्रमाणानि । वही १/७ A अविद्यास्मितारागअभिनिवेशाः क्लेशाः । वही २/३ * अभ्यासवैराग्याभ्यां तनिरोधः । वही १/१२ ... त्रयमेकत्र संयमः। योगसूत्र ३/४ x तत्र स्त्रितौ यत्लोऽभ्यासः । वही १/१३ * दष्टानुश्रविक विषयधितृष्णस्य वशीकार संशा वैराग्यम् । वही १/१५