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(२८) जैनपरम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन
नाथ सम्प्रदाय की योग साधना हठयोग के साथ साथ पातञ्जल योग से भी मिलती जुलती है । शिव और शक्ति का मिलन ही इस योग का ध्येय है।.... शैवागम एवं ध्यान:
शैवागम शिव के पाँच मुखों से निकली हुई अनुभूतियों का साहित्य है। शैवागमों के विषय में स्वयं शिव अपने मुख से कहते हैंजो कुछ जगत में है, देखा सुना जाता है, अनुभूत होता है, वह सब शिव शासन से ही चल रहा है । शैवी विद्या पराविद्या विद्या है, जो पशु को पाशमुक्त करा देती है।x शैवागमों का मूलाधार शैवसंस्कृति है । इसमें मूलतः पूरे स्वरूप को शिव और परमशिव नाम से सम्बोधित किया गया है। यह शिव पूरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त है। शिव की विश्व अन्तर्यामी दशा तो वह दशा है जिसमें मैं शिव हूँ। यह भी शिव ही है । तुम भी शिव हो। सब कुछ शिवमय है, शिव के अतिरिक्त कुछ नहीं है IA शिव तत्व के सम्बन्ध में कहा गया है कि शिव की इच्छा से जो प्रेरणा उत्पन्न हुई वह शिव तत्व है == एवं प्रणव भी शिवतत्व है, क्योंकि ओम् (प्रणव) में अ-उ.म ये तीनों अक्षर हैं। अ से आत्मतत्व, उ से विद्यातत्व और म से शिव तत्व का क्रम माना गया है। यह शिव परम अखण्ड महाप्रकाश स्वरूप है और इसे समस्त सृष्टि-स्थिति का केन्द्र माना जाता है। इस केन्द्र बिन्दु से निकले हुए पाँच बिन्दु ही शिव के पाँच मुख हैं.... शिवस्याभ्यन्तरे शक्तिः शक्तेरभ्यन्तरः शिवः । __ अन्तरं नैव जानीयाचचंद्रचचंद्रिकयोरिव ।। (सिद्ध सिद्धांत पद्धति ४/२६, x शैव दर्तन तत्त्व, पृ० ७६ * वही पृ० २१७ A अहं शिवः शिवश्चायं त्वं चापि शिव एवहि। __सर्व शिवमयं ब्रह्म शिवात् परं न किंचन ।। (वही, पृ० २१८ = (क निजेच्छया। जगत् सृष्टुमधुक्तस्य महेशितुः ।
प्रथमो यः परिस्पन्दः शिवतत्वं तदुच्यते ॥
(शिवपुराण, कै० स० १६ अध्याय) (ख) 'शिवतत्त्वं मकारः स्याद्धायदेवेति चिन्त्यंताम्' (शैवदर्शन तत्व, पु.२१६)