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(२६) जैन परम्परा म ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन
प्रवर्तन किया था ऐसे मूलनाथ नौ हुए है ये नौ नाथ कौन-कौन थे इस सम्बन्ध में एक मत प्राप्त नहीं हुआ है, 'महार्णव तन्त्र' में नवनाथों के नाम इस प्रकार बतलाये हैं।.... गोरक्षनाथ, जालन्धरनाथ, नागार्जुन सहस्रार्जुन, दत्तात्रेय, देवदत्त, जडभरत, आदिनाथ एवं मत्स्येन्द्रनाथ । अनेक ग्रन्थों में नाथसम्प्रदाय का नाम मिलता है परन्तु यह पन्थ अलगअलग नामों से भी जाना जाता है जैसे-सिद्ध मत X, सिद्धमार्ग, योग मार्गA, योग सम्प्रदाय-,तथा अवधूत सम्प्रदाय आदि नाथपंथियों को कनफटा और दर्शनी साधु कहा जाता है। इनका कनफटा नाम इस कारण पड़ा क्योंकि ये लोग कान फाड़कर एक प्रकार की मुद्रा धारण करते हैं।+
इनके मत में योगमत और योग सम्प्रदाय नाम सार्थक ही है, क्योंकि इन लोगों का मुख्य धर्म योगाभ्यास ही है। इनके योगमाग की क्रियायें एवं साधना अधिकतर हठयोगियों से मिलती हैं। इसमें हठयोग के दो भेद बतलाये गये हैं। प्रथम भेद में आसन, प्राणायाम तथा धौति आदि षटकर्मों का वर्णन है। आसनादि के द्वारा नाड़ियां शद्ध हो जाती है तथा इनमें पूरित वायु मन को निश्चल करता है जिसमें परमानन्द की प्राप्ति होती है। दूसरे भेद में कहा गया है कि नासिका के अग्रभाग में दृष्टि को लगाकर श्वेत, पीत, रक्त एवं कृष्ण रंगों का ध्यान करना चाहिये । ऐसा करने से साधक चिरायु होता है तथा ज्यो-- तिर्मय होकर शिवरूप हो जाता है।→ ... हठयोग प्रदीपिका, पृ० ४ x गोरक्षसिद्धान्त संग्रह, पृ. १२ *योगबीज । A गोरक्षसिद्धांत संग्रह, पृ ५, २१ -वही, पृ. ५८ र अवधूत सम्प्रदाय, पृ० ५६ + नाथ सम्प्रदाय, पृ० १० → हठाज्ज्योतिर्मयो भूत्वा ह्यन्तरेण शिवो भवेत् ।
अतोऽयं हठयोगः स्यात सिद्धिद: सिद्धसेवितः ॥ (प्राणतोषिणी, पूरू ८३५)