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भारतीय परम्परा में ध्यान (२५)
नाथयोग:
वालों ने
साम्प्रदायिक ग्रन्थों में नाथ सम्प्रदाय के अनेक नामों का उल्लेख मिलता है । हठयोग के समान ही नाथ - सम्प्रदाय सब नाथों में प्रथम आदिनाथ शिव को माना है । इस सम्प्रदाय का प्रारम्भ अथवा पुनर्स्थापन गोरखनाथ से हुआ है। गोरखनाथ का समय १० वी या ११ वी : शती से पूर्व माना गया है । नाथ सम्प्रदाय में 'ना' का अर्थ है अनादि रूप और 'थ' का अर्थ है (भुवनत्रयका ) स्थापित होना, इस प्रकार 'नाथ' मत का स्पष्टार्थ वह अनादि धर्म है जो भुवनत्रय की स्थिति का कारण है । श्री गोरक्ष को इसी कारण से 'नाथ' कहा जाता है । 'ना' शब्द का अर्थ नाथब्रह्म जो मोक्षदान में दक्ष है, उनका ज्ञान कराना है और 'थ' का अर्थ है | ( अज्ञान का सामर्थ्य को ) स्थगित करने वाला भी किया गया है । X
ऐसी धारणा है कि शिव ने मत्स्येन्द्र नाथ को योग की शिक्षा दी थी और मत्स्येन्द्र नाथ ने गोरखनाथ को इसकी दीक्षा दी थी । नाथपन्थीय परम्परा इस प्रकार से मानी जाती है-आदिनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ, जालन्धरनाथ एवं गोरक्षनाथ... जिन्होने इस सम्प्रदाय का + आदिनाथः सर्वेषां नाथानां प्रथमः, ततो नाथसम्प्रदायः प्रवृत्त इति नाथ संप्रदायिनो वदन्ति । ( हठयोग प्रदीपिका, टी० (१-५) सिद्ध सिद्धान्त पद्धति एण्ड अदर वर्क्स आफ नाथ योगीज पृ० ७ वही पृ० १०
गोरखनाथ एण्ड दी कनफटा योगीज पृ० २३५-३६ * नाकारोऽनादि रूपं थकारः स्थाप्यते सदा ।
भुवनत्रयमेवैकः श्री गोरक्ष नमोऽस्तुते ॥ ( सिद्ध सिद्धांत पद्धति) X [ क) श्री मोक्षदानदक्षत्वात् नाथब्रह्मानुबोधनात् । स्थगिताज्ञान विभवात् श्री नाथ इति गीयते ।। शक्ति संगम तन्त्र ) (ख) देदीप्यमानस्तत्वस्य कर्त्ता साक्षात् स्वयं शिवः ।
संरक्षन्तो विश्वमेव धीराः सिद्धमताश्रयाः ॥ ( सिद्ध सिद्धान्त पद्धति)
नाथसम्प्रदाय, पृ० २६
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