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________________ भारतीय परम्परा में ध्यान (१७) रहने वाले और हमेशा जप, तप तथा होम करने वाले होते हैं उन्हें कभी भी रोगादि नहीं होता है। इस प्रकार स्मतियों में मोक्ष को प्राप्त करने के लिए जप, तप, एवं योगाभ्यास का वर्णन मिलता पुराणों में ध्यान: भारतीय संस्क्तति के स्वरूप की जानकारी के लिए पुराणों के अध्ययन की बहुत आवश्यकता है। पुराण भारतीय संस्कृति का मेरुदण्ड है। मंत्र संहिता, ब्राह्मण, उपनिषदों जैसे वैदिक वाड.मय के ग्रन्थों में 'पुराण' की सत्ता है। पुराण शब्द की व्यपत्ति 'पूरा भवम्' इस अर्थ में 'सायं चिरं प्राहवे-प्रगेऽव्ययेभ्यष्टयुटयुलौड तुट च' है । यास्क ने इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार से की है कि जो प्राचीन होकर भी नया होता है, वह पुराण है।- पद्म पुराण के अनसार इसकी व्यत्पत्ति इन सबसे भिन्न है-वहाँ जो प्राचीनता की कामना करता हैं वह पुराण है ऐसा कहा गया है। वायुपुराण के अनसार प्राचीन काल में जो जीवित था उसे 'पुराण' कहते हैं * श्रीमद् भागवत पुराण में भक्तियोग के साथ-साथ अष्टाड.गयोग का भी वर्णन किया गया है। भागवत पुराण के तीन स्कन्धों में योग का विशेष विवरण दिया गया है-दूसरे स्कन्ध के २५ वें तथा २८ वें अध्यायों में कपिल जी का अपनी माता देवहति के प्रति योग का उपदेश, फिर इसी स्कन्ध के १३ में अध्याय में सनकादियों को हंसरूपधारी भगवान् के द्वारा योग का वर्णन तथा ग्याहरों स्कन्ध के १४ वें अध्याय में ध्यान योग का विशद वर्णन +मड्.गलाचारयुक्तानां नित्यं च प्रयतात्मनाम् । " जपतां जुह्वतां चैव विनिपातो न विद्यते ॥ (मनस्मृति ४/१४६) पाणिनि सूत्र ४/३/२३ ---- यास्क निरुक्त ३/१९) A पुर। परम्परा वष्टि पुराणं तेनु तत् स्मृतम् । (पद्म पुराण ५/२/५३) * यस्मात् पुरा हयनतीदं पुराणं तैन तत् स्मृतम् । निरूक्तमस्य यो वेद सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ (वायुपुराण १/२०३)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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