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________________ (१६) जैनपरम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन ग्रन्थों में मानव को जीवन में किस प्रकार से आचरण करना चाहिये उन नियमों का पालन वह किस प्रकार से करे इसको विस्तृत चर्चा की गई है। इसमें वैदिक परम्परा में विहित चारों आश्रमों की विभिन्न नीतियों की विस्तृत भूमिका का उल्लेख किया गया है ।.... याज्ञवल्क्यस्मति, मन स्मृति पाराशरस्मति आदि स्मतियों में साधकों के अनेक कर्त्तव्यों तथा गृहस्थों के सत्कर्मों की चर्चा की गई है ।x स्मतियों में विहित वर्णों तथा आश्रमों के सम्यक धर्म का पालन करने से ही मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है।* याज्ञवल्क्य स्मृति में योग से सम्बन्धित कुछ बातें कही गयी हैं कि मन एवं बद्धि को विषयों से हटाकर ध्येय को आत्मा में स्थित करके योग को करना चाहिये । A योग की क्रियाओं तथा अभ्यास के द्वारा- इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करनी चाहिये। बाह्य चित्त वत्तियों के निरोध से आत्म दर्शन अथवा तत्त्वज्ञान की प्राप्ति होती है।+ जो साधक शुभ आचार से युक्त होकर और हमेशा पवित्र .... चत्वारः आश्रमाः ब्रह्मचारी गृहस्थ वानप्रस्थ परिव्राजकाः ।(वशिष्ठ स्मति २०६) x संध्यास्नानं जपो होम स्वाध्याय देवतार्चनम् । विश्वदेवातिर्यच षट् कर्माणि दिने दिने ।। (पाराशर स्मृति ३६) * योगशास्त्र प्रवक्ष्यामि संक्षेपात् सारमुत्तमम् । यस्य च श्रवणाऽद्यान्ति मोक्षचैव मुमुक्षवः। (हारीतस्मृति ८/२) A अनन्यविषयं कृत्वा मनोबुद्धिस्मतीन्द्रिधम । ध्येय आत्मा स्थितो योऽसौ हृदये दीपवत्प्रभुः ।। (याज्ञवल्क्यस्मृति ४/१११) - प्राणायामेन वचनं प्रत्याहारेण च इन्द्रियम् । धारणाभिशकृत्वा पूर्व दुर्घषणं मनः ॥ (हारीतस्मति ८/४) अरण्य नित्यस्य जितेन्द्रियस्य सर्वेन्द्रिय प्रीति निवर्तकस्य। अध्यात्मचिन्तागत मानसाच्च ध्रुवाहनावृत्तिर पेक्षकस्य इति ।। वशिष्ठ स्मृति २५४) + इज्याचारदमाहिंसादानस्वाध्याय कर्मणाम् । अयं तु परमो धर्मो यद्योगेनात्मदर्शनम् ॥ (याज्ञवल्क्यस्मति १/८)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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