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भारतीय परम्परा में ध्यान (8) जैसे श्रद्धा, तप, ब्रह्मचर्य, सत्य, दान आदि और इनकी महती आवश्यकता का उल्लेख विभिन्न उपनिषदों में हुआ है।... मोक्ष प्राप्ति के लिए तप एव समाधि की अनिवार्यता बतलायी गयी है। योग एवं समाधि की अवस्था में वाणी एवं मन निवृत्त हो जाते हैं, साधक निर्भीक बनता है और ब्रह्मानन्द का आस्वादन करता है। जब साधक को ब्रह्मानन्द की प्राप्ति हो जाती है तब वह जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है । इस प्रकार उपनिषदों में ध्यान का विभिन्न रूपों में उल्लेख किया गया है। रामायण एवं महाभारत में ध्यान:
रामायण एवं महाभारत का भारतीय वाड्.मय में बहत ऊँचा स्थान है । महाभारत को तो विद्वान् पंचम वेद के नाम से पुकारते हैं, एवं इसे वेदों का सा आदर देते हैं। रामायण एवं महाभारत दोनों में हो अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष चारों, पुरुषार्थो, नीति एवं कर्म का निरूपण किया गया है। इसी क्रम में कहीं-कहीं कई स्थलों पर ध्यान एवं योग का भी वर्णन किया गया है। महाभारत में बतलाया गया है कि जीव को सर्वप्रथम अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करनी चाहिये क्योंकि इन्द्रियां चंचल, अस्थिर तथा अनेकों प्रकार की कषायों की जड़ होती हैं 1A इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् मन को स्थिर .... (क) तदेतत् त्रयं शिक्षेद्दमं दानं दयामिति । (वृहदारण्यकोपनिषद्
(ख) सत्यमेव जयते नानृतम् । (मुण्डकोपनिषद् ३/१/६) (ग) यज्ञेन दानेन तपसा लोकाञ्जयन्ति ते धूममभिसंभन्ति ।
वृहदारण्यकोपनिषद् ६/२/१६ । : यतोवाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह ।
आनन्दं ब्रह्मणो विद्वान् न विभेति कुतश्चनेति ।। तैत्तिरीयोपनिषद्
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तेषुबहमलोकेषु परा:....परावतः...वसन्ति...तेषां...न पुनरावृत्तिः (बृहदारण्यकोपनिषद् ६/२/१५) 4 महाभारत, अनुशासन पवं, ६६/२८-३०