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________________ ध्यान का लक्ष्य - लब्धियाँ एवम् मोक्ष ( २४४ ) एक बात ध्यान देने योग्य यह है कि आत्मा जब तक संसार के बन्धन में रहती है तब तक वह नाम कर्म के उदय के कारण संकोचविस्तार शरीर धारण करती है और मुक्त हो जाने पर अशरीरी बन जाती है लेकिन आत्मा जिस अन्तिम शरीर के द्वारा मोक्ष को प्राप्त करती है, उसका १/३ भाग अर्थात् मुख, नाक, पेट खाली अङग होते हैं, बाकी २/३ भाग में उस जीवात्मा के उतने प्रदेश उस सिद्ध स्थान में व्याप्त हो जाते हैं, जिसे अवगाहना कहते हैं। 5 प्रत्येक जीव का अपना अस्तित्व होता है । ऐसी ही आत्मा संसार में दुबारा नहीं आती क्योंकि वह वीतराग, वीतमोह और वीतद्व ेष होती है । एक दीपक के प्रकाश में जैसे अनेकों दीपकों का प्रकाश समा जाता है, उसी प्रकार एक सिद्ध में अनेक सिद्धों को अवकाश देने की जगह होती है । सिद्धों में लोहे के गोले के समान नीचे आने को विवश गुरुता का और वायु से प्रेरित आक की रूई की तरह हल्का, लघु गुण भी होता है जिसे 'अगुरुलघुगुण' भी कहते हैं । + इस प्रकार सिद्धात्मा शरीर, इन्द्रिय, मनविकल्प एवं कर्मों से रहित होकर अनन्त वीयं को प्राप्त होता है और नित्य आनन्दस्वरूप में लीन हो जाता है । कर्मबन्ध का क्रम अवरुद्ध होने पर आत्मा अविद्या, अस्मिता, रागद्वेष एवं अभिनिवेशरूप क्लेशों के क्षीण हो जाने पर, विघ्नबाधाओं 5 उत्तराध्ययन सूत्र ३६ / ६४ + एकदीपप्रकाशे नानादीपप्रकाशवदेकसिद्धक्षेत्रे सङ्करव्यतिकर दोष परिहारेणानन्त सिद्धावकाशदान सामथ्यं मवगाहन गुणो भण्यते । यदि सर्वथा गुरुत्वं भवति तदा लोहपिण्डवदधः पतनं, यदि च सर्वथा लघुत्वं भवति तदा वाताहतातुर्क लवत्सर्वदैव भ्रमणमेव स्यान्न च तथा तस्मादगुरुलघुत्वगुणोऽभिधीयते । (वृहद्रव्यसंग्रह, टी. १४/४२/४) निष्कलः करणातीतो निर्विकल्पो निरंजनः । अनन्तवीर्यतापन्नो नित्यानन्दाभिनन्दितः ।। (ज्ञानार्णव ४२/७३)
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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