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भारतीय परम्परा में ध्यान (७)
ही प्रयुक्त हुए हैं।.... उपनिषदों में ध्यान करने की विधि बतलाते हुए कहा गया है कि ध्यान योग का साधक सिर गले एवं छाती को ऊँचा उठाये रखे एवं समस्त इन्द्रियों को बाहृय विषयों से हटाकर उनका मन के द्वारा हृदय में निरोध कर लेना चाहिये और फिर ऊकार रूपी नौका का सहारा लेकर परमात्मा का ध्यान करके समस्त भयानक प्रवाहों को पार कर लेना चाहिये। वहां ध्यान करने के लिए स्वच्छ एवं समतल भूमि पर आसन लगाने के लिए कहा गया है।* ध्यान को आध्यात्मिक अर्थ में प्रयुक्त किया गया है इसी कारण ध्यान को मोक्ष प्राप्ति का कारण माना गया है ।A मनुष्य ध्यान योग के साधन के द्वारा समस्त मलों को धोकर आत्मा के यथार्थ स्वरूप को भली प्रकार से प्रत्यक्ष रूप में देव लेता है, जिससे वह असंग हो जाता है और कैवल्य अवस्था को प्राप्त हो जाता
.... (क) छान्दोग्योपनिषद् ७/६/१ __ (ख) तैत्तिरीयोपनिषद २/४
(ग) श्वेताश्वतरोपनिषद् २/११/६ x त्रिरुन्नतं स्थाप्य समं शरीरं
हृदीन्द्रियाणि मनसा संनिवेश्य । ब्रह्मोडुपेन प्रतरेत विद्वान्
स्त्रोतांसि सर्वाणि भयावहानि ।। प्राणान् प्रपीडयेद् संयुक्तचेष्टः
क्षीणे प्राणे नासिकयोच्छवसीत् । दुष्टाश्युक्तमिव वाहमेनं
विद्वान् मनो धारयेताप्रमत्तः ।। (श्वेताश्वतरोपनिषद् २/८/६] *वही २/१० > तं दुर्दर्श गूढ मनुप्रविष्ट, गुहाहितं गहवरेष्ठं पुराणम् ।
अध्यात्मयोगाधिगमेन देवं, मत्वा धीरो हर्षशोको जहाति ।। (कठोपनिषद् १/२/१२)