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________________ [२३१] जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन जैन परम्परा में ज्ञान आदि शक्ति विशेष को लब्धि कहा गया है। जीव में संयम या संयामासंयम आदि को धारण करने वाली योग्यताएँ भी लब्धि कही जाती हैं। लब्धि के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न अर्थ किये हैं कहीं तप विशेष से प्राप्त होने वाली सिद्धि को लब्धि कहा गया है +, तो कहीं ज्ञानावरण के क्षयोपशम विशेष को लब्धि माना गया है । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र में जो जीव समागम होता है उसे लब्धि कहते हैं । इस प्रकार लब्धि के अर्थ भिन्न-भिन्न लिये गये हैं किन्तु ध्यान का मुख्य फल मोह विलय एवं गौण फल लब्धियों का प्राप्त करना है। लब्धियों के प्रकार : लब्धियों की संख्या के बारे में विद्वान एक मत नहीं हैं। भगवती सूत्र में दस प्रकार की लब्धियाँ मानी गई हैं। - तो तिलोयपपणत्ती में ६४ प्रकार की लब्धियों का उल्लेख मिलता है। * आव. श्यकनियुक्ति ...में २८ प्रकार एवं षट्खण्डागम में ४४ प्रकार बतलाये गये हैं।A + तपोविशेषादृद्धि प्राप्तिलब्धिः । सर्वार्थसिद्धि २/४७/१६७/८) - इन्द्रियनिर्वत्तिहेतुः क्षयोपशमविशेषोलब्धिः । यत्संनिधानादात्माद्रव्येन्द्रिय निर्वत्ति प्रतिव्याप्रियते स ज्ञानावरण-क्षयोपशम विशेषोलब्धिरिति विज्ञायते । (षटखण्डागम, ध. टी. १/१, १, ३३/२३६/५) = धवला, ८/३, ४१/८६/३ - दसविधा लद्धी पण्णता, तंजहा-नाण लदधी, दंसणलद्धी, चरित्रलद्धी, चरिताचरितलद्धी, दाणलद्धी, लाभलद्धी, भोगलडी, उपभोगलद्धी, वीरियलद्धी, इंदियलद्धी। (भगवती सूत्र ८/२) * तिलोयपण्णत्ती, भाग १/४/१०६७-७१ .... आवश्यक नियुक्ति ६९-७० A षट्खण्डागम, खण्ड ४, १/६
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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