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ध्यान का लक्ष्य-लब्धियाँ एवम् मोक्ष (२३०)
गया है । बौद्ध दर्शन के अनुसार अभिज्ञा अर्थात् लब्धियाँ दो प्रकार की हैं-१-लौकिक अभिज्ञा तथा २-लोकोत्तर अभिज्ञा ।+ लौकिक अभिज्ञाओं के अन्तर्गत ऋद्धिविध, दिव्यस्त्रोत, चैतीपयेज्ञान-पूर्वनिवा सानुस्मृति एवं चित्तोत्पाद अभिज्ञाये हैं जिनसे आकाशगमन, पशुपक्षी की बोलियों का ज्ञानादि होता है। जब साधक अर्हत् अवस्था को प्राप्त होकर फिर से साधारण लोगों के समक्ष निर्वाण मार्ग को बतलाने के लिए उपस्थित होता है तब उस साधक को लोकोत्तर अभिज्ञा की प्राप्ति होती है। यहाँ विभूतियों के दस प्रकार बतलाये गये हैं, जो कि इस प्रकार से हैं-१-अधिष्ठान, २-विकूर्वण, ३-मनोमया, ४-ज्ञानविस्फार, ५-समाधि विस्फार, ६-आर्य ऋद्धि, ७-कर्म विपाकजा, ८-पूण्यवती ऋद्धि, ६-विद्यामया ऋद्धि तथा १०-इज्झनठेन ऋद्धि । जैन दर्शन में लब्धियाँ :
वैदिक परम्परा एवं दौद्ध दर्शन की भांति जैन योग में भी समाधि, तप एवं ध्यान के द्वारा अनेक प्रकार की लब्धियों को प्राप्त करने का विस्तारपूर्वक वर्णन हुआ है । अङग ग्रन्थों से लेकर योगशास्त्र और ज्ञानार्णव तक इन लब्धियों का वर्णन स्पष्ट एव विस्तृत रूप से किया गया है। ये अलग बात है कि विभिन्न ग्रन्थों में इनकी संख्या भी भिन्न-भिन्न है ।
भगवती सूत्र में अनेक स्थलों पर लब्धियों का वर्णन किया गया है।- स्थानाङ्ग =, औपपातिक X, प्रज्ञापना *, में भी लब्धियों का उल्लेख मिलता है । इन में शारीरिक एवं मानसिक तथा आत्मिक सभी प्रकार की लब्धियों का वर्णन किया गया है।
+ विसुद्धिमग्गो, मगो१।।
विसुद्धि मग्गो का इद्धि विध निदेसो पृ० २६१ से २६५ - भगवती सूत्र ५/४/१८६, १४/७/५२१-५२२, ५/४/१६६,२/१०/१२०, ___३/४/१६०, ३/५/१६१, १३/६/४६८ = स्थानाङ्ग २/२ x औपपातिक सूत्र २४ * प्रज्ञापना, पद ६, सूत्र १४४