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________________ (२२६)जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन व्रत का पालन करने वाले का वचन सदैव सत्य ही होता है मिथ्या नहीं होता । अस्तेय व्रत की प्रतिष्ठा से वह समद्धिशाली हो जाता है । अपरिग्रह की साधना से योगी को पूर्वजन्म के ज्ञान का बोध होता है। नियम से प्राप्त लब्धियों के द्वारा साधक की अन्तंबाह्य शौच पालन से शरीर एवं चित्त की शुद्धि होती है एवं वह एकाग्रता, इन्द्रिय जय एवं आत्मबोध की योग्यता को प्राप्त करता है। आसन के द्वारा साधक के समक्ष सर्दी-गर्मी की बाधायें उत्पन्न नहीं होतो । प्राणायाम के द्वारा विवेक ज्ञानावरण का क्षय होता है और विविध प्रकार की धारणा के लिए साधक मन की तैयारी करता है । प्रत्याहार के द्वारा समस्त इन्द्रियों पर साधक विजय प्राप्त करता है। इस प्रकार इन लब्धियों के द्वारा साधक सर्वज्ञता को भी प्राप्त करता है ।- योगदर्शन के विभूतिपाद में अनेक विभूतियोंलब्धियों का वर्णन किया गया है जिनमें कुछ विभूतियाँ ज्ञान से सम्बन्धित होने के कारण ज्ञान विभूतियाँ कहलाती हैं तथा कुछ शरीर से सम्बन्धित होने के कारण शरीर सम्बन्धी कहलाती हैं। उन विभूतियों में से कुछ प्रमुख विभूतियाँ इस प्रकार से हैं-अतीतानागत ज्ञान, सर्वभूत रुतज्ञान, परचित्त ज्ञान, पूर्वजाति ज्ञान, भुवन ज्ञान, तारा व्यूह ज्ञान, काव्यव्यूह ज्ञान, उपरान्त ज्ञान और सिद्ध दर्शनादि ज्ञान विभूतियाँ हैं तथा शारीरिक विभूतियाँ इस प्रकार से हैं-अन्तर्धान, परकायप्रवेश, आकाशगमन, हस्तिबल, रूपलावण्य, कायसम्पत्, क्षुत्पिपासानिवृत्ति और अणिमा, महिमा, लधिमा आदि का प्रादुर्भाव IX बौद्ध दर्शन में लब्धियाँ : बौद्ध परम्परा में लब्धियों का 'अभिज्ञा' नाम से उल्लेख किया + पातञ्जल योगदर्शन २/३५-३६-३७-३८-३६ वही २/४०-४६ = वही २/४६-५३-५४ - वही ३/५, १६-१८, २६, ४०-४२, ४५, ४८, ५० x पातञ्जल योग दर्शन, विभूतिपाद ।
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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